भारतीय संस्कृति | Bharatiya Sanskrit

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Bharatiya Sanskrit by प्रो. शिवदत्त ज्ञानी - Pro. Shivdatt Gyani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भौगोलिक विवेचन प्‌ कितना महत्व हें। भारतीय सस्कृति के बारे में तो यह बात बिलकुल ही ठीक सिद्ध होती है। आज भी भारत से नदियाँ देवियों के समान पचित्र मानी जाकर पूजी जाती है। इन सबसे गगा तो साक्ताद माता ही समसकी जाती है। इसी नदी के किनारे प्राचीन श्ार्यों ने अपनी सस्कृति को विकसित किया था । चीन बाबुल मिस्र आदि देशो की प्राचीन संस्कृतियों भी नदियों के किनारे ही विकसित हुईं थी । निसगं ने भारत पर जितनी छुपा की है उतनी कदाचित्‌ दी फिसी अन्य देश पर की हो । धच्छे-से-अच्छा जलवायु सुन्दर नदियों व झरने मलया- चल की शीतल मन्द सुगन्धघित वायु आदि इसे प्राप्त है । अन्न वस्त्र फल फूल आदि यहाँ बहुत ही सरलता से प्राप्य है । श्रकृति देवी ने अपने सौन्दर्य को यही के जगलों नदियों पव॑तों आदि बिखेर दिया हे जिससे कितने ही कवि-हद्यों ने प्रेरणा प्राप्त की है । इस बात को कौन झस्वीकार कर सकता है कि कालिदास सवसझूति बाण आदि श्रेष्ठ कवियों ने प्रकृति देवी के ही सौन्दर्य को शझ्रपनी रच- नाओ मे भर दिया हे ? यदि भारत से घने जगल नदी पर्वत आदि न ह्दोते तो यहाँ ऐसा काव्य वियूसित ही न हो पाता । भौगोलिक परिस्थिति के कारण ही भारत-भ्रूमि शस्यश्यामला रहती है । यहाँ रोटी का सवाल बिलकुल जटिल नहीं हो सकता यदि कोई बाह्य शक्ति या बाइ्य जीवन-क्रम यहाँ न रहे । प्राचीन काल से यही हाल था । सनन वस्त्र आदि बहुत ही सरलता से प्राप्त होते थे इसीलिए यहाँ के निवासी जीवन के अन्य पहुलुआओ पर भी अच्छी तरह से विचार कर सके । पेट खाली रहने पर इंश-सजन भी नहीं सूकता । भरपेट खाने के पश्चात्‌ यहों के निवासी जीवन की पहेलियों को सुल- साने लगे जीवन-मरण जीव तरह्म जगत्‌ आदि सम्बन्धी प्रश्न उन्हे चुब्घ करने लगे । परिणासत इस दिशा मे अथक प्रयत्न किये गए जिनको हम उपनिषदादि दाशंनिक अन्यों के रूप मे देख सकते है । इन्ही प्रयतनों के परिणामस्वरूप पुनजन्स ब्रह्म जीव योग आदि




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