निबंध - रत्नावली भाग - 1 | Nibandh - Ratnavali Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
309
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ 92
लिये उन्होंने नौकरी छोड़ दी और ग्वालियर चले गए। पर
वहाँ भी न ठहर सके | वहाँ से पंजाब में जड़ाँवाला में जाकर
उन्होंने कृषिकाये आरम्म किया। यहाँ उन्हें विशेष आर्थिक
कष्ट रहा | उनका देहांत ३१ माच सन् १९३१ ( জন্নন্ ৫৫৫),
को हुआ ।
सरदार पूणसिंह के लिखे पाँच हिंदी लेखों का पता अब
तक चला है--(१) कन्यादान, (२) पवित्रता, (३) श्राचरण
की सभ्यता, (४) मजदूरी ओर प्रेम, (५) सच्ची वीरता । इनमे से
अधिकांश लेख (सरस्वती पत्रिका मं समय समय पर प्रकाशित
हुए हैं | इन लेखों की रौली भावप्रधान दै। इनमे लाक्तणिकता
के द्वारा उनक्री भाषा को शक्ते ओर भात्रों का विभूति को च्यत
मनोहर हट दख पड़ती है । इस नई शैनी के प्रवत प्रो
पृण सिह थे । अभी तक उनकी समक्रज्षता करन की ओर किसी
की प्रवृत्ति नहीं देख पड़ती | डसके लिए प्रकांड विद्वत्ता, भावों
का प्रबल प्रवाह और अपने विचारं की तत्लीनता चाहिए।
यद्यपि प्रो० पूणरसिह के पाँच ही लेखों का अब तक पता चला है,
पर हिंदी निबंधों में वे एक विशिष्ट स्थान के अधिकारा हैं ।
यदि प्रोफेसर पूणेसिह की सांसारिक स्थिति में घोर परिवत्तन
नहोतातो न जाने ऊितने रत्नों से वे भाषा के भांडार को मरते ।
(३) पंजाब का काँगढ़ा प्रांत प्राचीन काल में त्रिगत्त कहलाता
था । वहाँ के सोमवंशी राजा जब मुलतान छोड़कर पहाड़ों में
गए थे तो अपने साथ पुरोहितों को भो लेते गए थे । उसी
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