भक्तियोग का तत्त्व | Bhaktiyog Ka Tattw

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामके गुण और चरित्र. १५ हैं। मेरेह्दारा उनका यह भय दूर हो, वे निर्भय हो जाय । अर्थात्‌ में वतको चला जाऊँ, जिनसे उनके वचन सिथ्या न हों ।! आप अपने शोकमग्न पिताजीसे कहते हैं-- महाराज ! इस बहुत ही छोटी-सी बात्तके लिये आपने इत्तना दुःख पाया ! मुझे पहले किसीने यह बात नहीं जनायी | महाराजको इस दशामें देखकर मैंने माता केकेयोसे पुछा और उनसे सब प्रसंग सुनकर ह॑के मारे मेरे सब अद्भ शीतल हो गये । अर्थात्‌ मुझे बड़ी शान्ति मिलो । हे पिताजी | इस मड्भलके समय स्नेहवश सोच करना त्याग दीजिये और हृदयमें हित होकर मुझे आज्ञा दीजिये ।” इतना कहते-कहते प्रभु श्रीरामचन्द्रजीके सब अज्भ पुलकित हो गये । अति लघु बात लामि दतु पावा । काहु न सोहि कहि प्रथम जनावा ॥ देखि गोसाइंहि पूंछिे माता । सुनि प्रसंगु भए सीतल गाता ॥ मंगल समय सनेह बस सोच অহিইহিজ লালন । आयसु देइअ हरषि हिये कहि पुछके प्रभु मात ॥ ( रा० च० मा०, अयोध्या ०, ४४ । ४; ४५ ) घन्य है जापको पितुभक्तिको, जिसके कारण स्नेहुवंश होकर सत्यतन्ध दश रथजोने आपका स्मरण करते हुए ही शरीरका त्याग कर दिया | मावृभक्ति आपकी मातृपक्ति बड़ी हो ऊबो है। जन्म देनेवाली माता कौसल्याके प्रति तो आपका महान्‌ आदरभाव है ही। विशेष बात _ तो यह है कि उनसे भी बढ़कर आदर आप उन माता केक्रेयी जीका . करते हैं, जिन्होंने आपको कठोर वचन कह्टे तथा वनमें भेजा । : ® রর भ দিলি १५०००... ००... পপি ০৯ উল ति ल नी ০৮২০০ य हा




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