भक्तियोग का तत्त्व | Bhaktiyog Ka Tattw
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
115 MB
कुल पष्ठ :
448
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जयदयाल गोयन्दका - Jaydayal Goyandka
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामके गुण और चरित्र. १५
हैं। मेरेह्दारा उनका यह भय दूर हो, वे निर्भय हो जाय । अर्थात्
में वतको चला जाऊँ, जिनसे उनके वचन सिथ्या न हों ।!
आप अपने शोकमग्न पिताजीसे कहते हैं-- महाराज ! इस
बहुत ही छोटी-सी बात्तके लिये आपने इत्तना दुःख पाया ! मुझे
पहले किसीने यह बात नहीं जनायी | महाराजको इस दशामें
देखकर मैंने माता केकेयोसे पुछा और उनसे सब प्रसंग सुनकर
ह॑के मारे मेरे सब अद्भ शीतल हो गये । अर्थात् मुझे बड़ी शान्ति
मिलो । हे पिताजी | इस मड्भलके समय स्नेहवश सोच करना त्याग
दीजिये और हृदयमें हित होकर मुझे आज्ञा दीजिये ।” इतना
कहते-कहते प्रभु श्रीरामचन्द्रजीके सब अज्भ पुलकित हो गये ।
अति लघु बात लामि दतु पावा । काहु न सोहि कहि प्रथम जनावा ॥
देखि गोसाइंहि पूंछिे माता । सुनि प्रसंगु भए सीतल गाता ॥
मंगल समय सनेह बस सोच অহিইহিজ লালন ।
आयसु देइअ हरषि हिये कहि पुछके प्रभु मात ॥
( रा० च० मा०, अयोध्या ०, ४४ । ४; ४५ )
घन्य है जापको पितुभक्तिको, जिसके कारण स्नेहुवंश होकर
सत्यतन्ध दश रथजोने आपका स्मरण करते हुए ही शरीरका त्याग
कर दिया |
मावृभक्ति
आपकी मातृपक्ति बड़ी हो ऊबो है। जन्म देनेवाली माता
कौसल्याके प्रति तो आपका महान् आदरभाव है ही। विशेष बात _
तो यह है कि उनसे भी बढ़कर आदर आप उन माता केक्रेयी जीका
. करते हैं, जिन्होंने आपको कठोर वचन कह्टे तथा वनमें भेजा ।
: ® রর
भ দিলি १५०००... ००...
পপি ০৯ উল
ति
ल
नी
০৮২০০
य
हा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...