महादेव गोविंद रानडे | Mahadev Govind Ranade

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Mahadev Govind Ranade by रामचंद्र वर्मा - Ramchandra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ ১) पूर्वर भोजम कर लिया । इनकी वहिन ने हँस कर कहा कि महादेय वो घी के बदले पानी दे दिया, पर इन्होने इसकी कोई परवाह नहीं की । चे स्नान करते समय पहला छोटा सिर पर डालते ही पुरुष- सूक्त का पाठ करते ये | कोई वीच में बोलता तो वे घुरा मानते ये! एक दिन ये संध्या कर रहे थे कि इनके थाया ने बीच में रोझ कर इनसे संघ्या के संत्रंध में छुछ प्रश्न पूछे । प्रशं का ठीऊ उत्तर देकर आपने अपने चाचा से पूछा कि वतलाइए मैने संध्या कहाँ से छोड़ी थी । उन्होंने कहा कि तुम फिर से सथ्या आरंभ कर दो, पर रानडे ने एफ न सुनी । अंत में उनके चाया ने अटक्ट्पन्चू चतटा दिया कि यहाँ से तुमने छोटी थी। उन्होंने यहीं से फिर संध्या करनी आरेभ फर दी | इनकी माता त्योहारों पर इनको आभूषण पहनातोी খা, सर ग्रे गहना पहनना अच्छा नहीं समझते थे। वे गोप और क्ड्ठों को तो फपदों से ढक छेते ये और अंगूठी के नगीने को मुद्ठी पंद करके छिपा लेते थे । एक दिन इनहो माँ ले इनको एक वरफी दी । उस समय सजदुरनी का छड़फझा सामने सदा था, इसलिये उन्होंने इनमे दूसरे द्वाथ में आधी यरपी देकर कहा कि यद्द तू माक भौर यह उस छड़फे को दे दे। इन्दे यदा डका उन लड़के को दे टिया और छोटा आप रग लिया । माँ ने कटा-- ध मरे, उम लद्के ्ोनो छोय डुक देना था। मष्टदेव কাটে तुम ने तो इस टडाय वा दुकदा उसे देने के छिये सश घा। इसलिये मेने बद्ी ८े दिया । ” कोई दयया चार




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