ज्ञान पञ्च्मी कथा | Gyan Panchmi Katha

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Gyan Panchmi Katha by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६६ सिंधी जेन अन्थमाला स्यरे, तेओ पोतानी गादी उपर बेटा बेठा साहित्य, इतिहास, स्थापत्य, चित्र, विशन, भूंगोल के भूगर्भविद्याने कगतां सामयिको के पुसको वांचता ज सदा देखाता हता., पोताना एवा विशिष्ट वाचनना शोखने लीथे तेओ इंभेजी, बंसाको हिंदी, गुजराती आदिमां प्रकट थता उच्च कोटिना, उक्त विषथोने लगता विधिध प्रकारनां साममिक पत्रो अने অন্‌ आदि नियमित मगावता रहेता हता, आटे, आर्किऑलॉजी, एपीभाफी, स्युमिस्मेटिक, ज्योग्राफी, आहकोनोग्राफी, हिस्दरी सने माहनिंग आदि विषयोना पुस्तकोनी तेमणे पोतानी पासे एक सारी सरखणी जाईम्रेरी ज बनाबी लीधी दती. तेओ खभावे एकन्तप्रिय अने अल्पभाषी हृता. नकामी वातो करवा तरफ के गप्पा सप्पा मारधा तरफ तेमने बहु ज॑ अभाव हतो. पोताना व्यावसायिक व्यवहारनी के विशाक् कारभारनी बाबतोमां पण तेओ बहु अ मितभाषी हता. प्रैतु ज्यारे तेमना प्रिय षिषयोनी ~ जेवा के स्थापय, इतिहास, चिन्र, शिष्य आदिनी - न्ब जो नीकटी दोय तो तेमां तेभो एटला निमम्त थई जता के कलाकोना कलाको वही जता तो पण तेओ तेथी थाकता नहीं के कंराठत। नहीं तेमनी बुद्धि अत्यंत तीक््ण हती, कोई पण वस्तुने समजवामां के तेनो मर्म पकडवामां तेमने कशी षार न लछागती. , নিঘান अने तत्त्वज्ञाननी गभीर बाबतो पण तेओ सारी पेठे समजी शषकता हता अने तेमनं मनन करी तेमने प्रचावी दाकती हता. तकं अने दलीलमां सेओ गोटा होया कामदाश्ाल्लीयोनेः पण भांठी देता. तेम ज गमे तेषो वाखाक माणस पण तेमने पोत्तानी चालाकीथी चकित के मुग्ध बनावी शके तेम न दतु, पोताना िद्धान्त के विवारमां तेभ घूर ज मकम रहेवानी प्रकृतिना हता. एक वार विचार नक्षी कया पछी अने कोई कानो खीकार कर्या पष्ठी तेमांथी चरित थवानुं तेओ भिल्‍्कुल पसंद करता नहीं व्यवहारमां तेभो बहु ज प्रामाणिक रहेवानी एत्तिवात्ा इता. बीजा बीजा धनवानोनी माफकं व्यापारमां दगा फटका के साण-क्ठ करीने धन मेठववानी तृष्णा सेमने यश्किनित्‌ पण यती न हती. तेमनी आवी ज्यावह्दारिक प्रामाणिकताने लक्षीने इंस्लेंडनी सर्कन्टारेल येकनी उायरेकटरोनी धों पोतानी कलकत्तानी शालानी बमा, एक डायरेक्टर थवा मारे तेमने खास बिनंति करी हती के जे मान ए पहेलां कोई पण हिंदुस्थानी ष्यापारीने मव्ययं न्दु. प्रतिभा জন प्रामाणिकता साथे तेमनामां योजनाशक्ति पण धणी उच्च प्रकारनी हती. तेमणे पोतानी ज खतंत्र बुद्धि अने कुशछता द्वारा एक तरफ पोतानी घणी मोटी जमीनदारीनी अने बीजी तरफ कोलीयरी बिगेरे माइनींगना उययोगनी जे सुध्यवस्था अने सुधटना करी हृती ते भोईमे ते ते विषयना शञात्ाओं यक्रित थता हता, पोताना घरना नानामां नाना कामभी ते छेक फोटीयरी जेवा श्होटा कारखाना सुभीमं - के ज्यां हजारो माणसों काम करता होय - बहु ज नियमित, ध्यव- स्थित अने खमोजित रीते काम चालयां करे तेवी तेमनी सदा व्यवस्था रहेती हती, छेक दरवानथी लह पोताना समोवीया जेवा समर्थ पुत्रो सुधीमां एक सरखं उच्च प्रकारनुं शिरत-पालन अने शिष्ट-आचरण तेमने द्यां देखातुं इतुं. सिंघीजीमां भवी समर्थं योजकशक्ति होवा छतां - अने तेमनी पसे संपूणै प्रकारनी साधनसंपमता होवा छतां - तेज धमालबाङरा जीवनी दूर रता हता अने पोताना नामनी जा्ेरातने मारे के लोकोमां ग्होटा माणस गणाषानी खातर तेओ लेबी कशी प्रवृत्ति करता न हता. रावबहादुर, राजाबहादुर के सर-नाईट विगेरेना सरकारी खिताबो धारण करवानी के काउ- न्सीलोमां जई ऑनरेबल मेंबर बनवानी तेमने क्यारेय इच्छा थई न हती. एवी खाली आडम्बरवाली प्रदृतिमां रैसानो दुब्येय करवा फरतां तेओ सदा साहिल्योपयोगी अने शिक्षणोपयोगी कार्योमां पोताना धननो सदूब्यय करता हत्ता, भारतव- धैनी प्राचीन कका भने तेने लगती प्राचीन वस्तुओ तरफ तेमनो उत्कट अनुराग इततो अने तेभी ते माठे तेमणे लांखो रूपिया सच्ची हता ओ सिचीजी सायेनो भारो प्रक्ष परिचय सन्‌ १९३० मां शरं थयो इतो. तेमनी इच्छा पोत्ताना सदूमत पुण्य 'छोक पिताना सारकमां जैन साहिलनों प्रस्तार भने प्रकाश थाय तेती कोई विशिष्ट संस्था स्थापन करकानो हतो मारा जीवनना सुदी्धकालीन सहकारी, सहचारी अने सन्मित्र पंडितप्रवर भी सुललालजी, जेओ मान्‌ श्री शकयदजीना নিহীঘ গতালাজন होरे भी बहादुर सिंहजी पण जेभनी उपर तेटलो ज विशिष्ट सद्भाव धरावता इता, तेमना परामश भने प्रसाषधी, तेमणे मने ए कार्यनी ओजना अने व्यवस्था हाभमां छेवानी बिन॑ंति करी अने में पण पोताने अभीष्ठतम प्रश्न- तिना आव्ेने अनुरूप उत्तम कोरिना साधमनी आति थती ओई वेनो सदषं अने सोष्टास खीकार कयो. कन्‌ १९११ ना प्रारंभ दिवसे, विश्ववंय कवीन्द्र भरी रवीखनाय टामोरमा निभूतिबिहा र्मा बिश्वषिर्यात श्षान्तिनिके- तमना बिश्वमारती-बियामवनमां “सची जन कामपीट' नी स्थापना करी अने खयो जन साहिद्यना जप्ययन-भष्यामन अने संशोधन-संपादन आदिलु कार्य चाह करय. भा विषेनी केटहीक प्राथमिक हकीकत, आ व्रधमाकाना सौ्ी अशम अकट बएला 'अवन्‍्यलथिस्तामणि' नामना मंबनी असख्तावनामां में आपेलो छे, तेभी तेनी अहिं पुनरुक्ति करकानी भरर सवी.




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