समीचीन धर्मशास्त्र | Samichin Dharm Shastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राकथन
स्वामी समनन््तभद्र भारतवर्ष के महान् नीतिशास्त्री और
तत्त्वचिन्तक हुए है। जैन दशनिकोमे तो उनका पद अति उच्च
माना गया है । उनकी शेली सरल, सक्षिप्त ओर आत्मानुभवी
सनीषी जेसी है | देवागम या आप्तमीमांसा और युक्त्यनुशासन
उनके दशेनिक अन्थ है। किन्तु जीवन और आचारके सम्बन्धमें
भी उन्होंने अपने र॒त्नकाण्ड-श्रावकाचारके रूप से अद्भू त देन दी
है । इस अन्थमें केवल १४० श्लोक है| मूलरूपसें इनकी संख्या
यदि कम थी तो कितनी कम थी, इस विषयपर ग्रन्थके वत्तेमान
सम्पादक श्रीजुगलकिशोरजी ने विरतृत विचार किया है। उनके
मतसे केवल सात कारिकाएँ संदिग्ध हैं। सम्भव है मात्चेतके
अध्यधशतककी शेंली पर इस ग्रन्थकी भी श्लोक संख्या रही
हो | किन्तु इस प्रश्का अन्तिस समाधान तो प्राचीन हस्तलिखित
अतियोका अनुसंधान करके उनके आधार पर सम्पादित प्रामाणिक
संस्करणएसे दी सम्यकतया हो सकेगा, जिसकी ओर विद्धान्
सम्पादकने भी संकेत किया दहै ( प्रु ८७ )
समन्तभद्रके जीवनके विषय मे विश्वसनीय तथ्य बहुत कम
ज्ञात ह| प्राचीन प्रशस्तियोंसे ज्ञात होता है कि वे उरगपुरके
राजाके राजकुमार थे जिन्होने गृहस्थाश्रमीका जीवन भी बिताया
था । यह उरगपुर पारख्य देशकी प्राचीन राजधानी जान पडती
है, जिसका उल्लेख कालिदासने मी किया दै (रघुवंश, ६।५६
चअरथोरगाख्यस्य पुरस्य नाथं ) । ६७४ ई के गद्वल ताम्र शासनके,
अनुसार उरगपुर कावेरीके दक्षिण तटपर अवस्थित था (एपि°
३०, १०१०२ )। श्री गोपालनने इसकी पहचान ज्रिशिरापल्लीके
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