चट्टान और सपना | Chattan Aur Sapna

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Chattan Aur Sapna by ख्वाजा अहमद अब्बास - Khwaja Ahamad Abbas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'फिक्र मे डूब गई हो, “यह सव एक लम्बी कहानी है। क्या में तुमसे अभी मिलने आ सकता हूं ? ” मैंने कहा, “मैं तो शहर से बहुत दूर जुहू में रहता हूँ । मगर हर रोज़ दोपहर को मैं शहर आता ही हूँ । ऐसा क्यों न कर, किसी रेस्तरां में इकट्ठे लंच खाएँ। अब यहाँ वम्बई मे भी तुम्हारा लखनऊ की तरह एक भेफयरः रेस्तरां बुल गया है । प्रफेयर ?” उसने रेस्तरां का नाम ऐसे दोहराया, जैसे किसी ने अचानक उसके चुटकी से ली हो, “नही-नदी, भै तुमे किसी रेस्तरां मे नही मिलना चाहता । वहां वहुत-से लोग होते है । हम भाराममे बात नही कर सकेंगे ।” “अच्छा,” मैंने कहा, “तो तुम यहाँ ही आ जाओ , मैं तुम्हारा इंतजार करूँगा, कितने बजे आओगे ?” “जितनी देर में टैब्सी को चचंगेट से जृह पहुँचने मे ठाइम लगेगा ।'' “कोई चातीस-वयालीस मिनट अपने वरामदे मे खडा मिलूँगा।” फिर मुझे कुछ याद आया ओर मैंने कहा, “अरे भाई लक्ष्मी भी साथ है तो उसे भी लेते आना--भाभी के दर्शन”'***एक वाक्य फिर मेरे दिमाग मे गूँजा और मैंने कहा, “हम तुम्हारे रकीव नही है, यार।/ मगर उधर से कोई जवाब नही आया, टेलीफोन का सिलसिला 'पहले ही कट चुका था । अगले पंतालोस मिनट तक पच्चीस बरस पुरानी तस्वीरें मेरे दिमाग में उभरती रही । बिरजू হত विरजेन्द्र *** विरजेन्द्र कुमार सिंह*** कंवर विरजे कुमार सिह“ वापसी का टिकट / 17




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