उर्दू साहित्य का इतिहास | Urdu Sahitya Ka Itihas

Urdu Sahitya Ka Itihas by रेवतीरमण दास - Revathi Raman Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुरा ह् मी के सन्त में साद के पुप्र मससह्द में रेस्ला में एफ काम्य पनाया ऊीर झाठाणदी फे ऊंत में सुमरों ने फयिता फी 1 प्र प्रफार अनेक अन्य सुमलसान फर्यियों ने छरम रथनाएं ग्टी हैं थे रपनाएँ छंगशास्र फे जलुमार पिंदी मापा में प्रशीत ६ और इनफे रघनाफाल फो पर्दू फा साहित्यिफ आरम मानना दिणात जरुद्ध छोर हैं। ऐसी रचनाएँ दंदी साहिस्प पे अंठगण समझी खायेंगी । फदि फे जाति-चम मेद फे उनकी फयिता पी भाषा का नामकरण नहीं दोता। हिंदी की रघनाओं में फारमी या अंग्रेजी के फुछ दत्त था शाने में उसकी भाषा रदें या अंप्रेजी नहीं दो सफसी। और ईिंदी साहिस्य फी विभिन्नता फा निरशफ उनफा ख्याफरण छंदशास्त्र े या उनफी प्रकृति फे सेव हैं। हिंदी में फारसी दाद फा फप प्रयोग दोने लगा या दिंदी फारसी छिपि में फप से छिखी लाने उगी आानि प्रभों फा उसर दूँ फे सादित्यिक जारम फा नहीं दैं। इसफे लिए यही जानना मुख्य है कि किस समय फारसो छंडशाख्र फे अलुसार हिंदी भाषा में पद फी रवना हुई, प्वादे उसमें फारमी फा शब्द सिखा ऐो या नददीं । चद्दी रचना-काछू उपूँ साहित्य फा आारंम दि। पद सारंभ सन्नी का मप्य दै जय कि गोछकुंढा फे सुढतान मुद्दम्मद छुछी ने फारमी छंदशास्र फे झजुसार दिंगी में फषिसा की थी 1 जिस प्रकार यंगाछ फे सुसछसान फ़ारसी झब्द वोखदे हैं सर शुजरात फे मुसठमान फ्रारसी मिभिद शुलराती पोूसे सी प्रकार उत्तरी मारत में फ्रारसी झब्द मिठी हुई दिंदो छयीत्‌ योठी जाही है । दूँ किसी देस या प्रात फी योछी नहीं कददी जा सकसी वरम्‌ सिस देश या जिस प्रात फी योछी हिन्दी ू छीर वर्हां सुसकमान धसे हैं इसी स्यान फी भाषा उसे कद्द सफते हैं। हिंदी भाषा का सिस्तार दिमालय सौर बिंध्याचरठू के वीच सिंघ नदी से िद्दार पांव तक है और इसी के चदू का मी स्थान है




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