गीता धर्म | Geeta Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
711
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विद्यानन्दजी महाराज - Vidyanandji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १६ )
सत्याम्रद के सिद्धान्तों को कायोन्वित फर ख्याति प्राप्त फरनेवाले प्रख्यात
अमेरिकन व्व योयो ने एक जगद पद है पराचीन युग को सव स्मरणीय वषु
में गीता स्वीपरि है। एकान्तवास, तपश्नयों, ध्यान आदि प्रयोगों में सप्त रनेबाढा
मद्दात्मा थोरो एक समय किसी ज॑गछ में निवास कर रहा था। एक दिन पर्णकुटो
के अंदर तख्ते पर लेटे हुए थोरों के आस पास सपे और बिच्छुओं की देसरूर उस
का भिन्न घड़ा भयभीत हो गया। उस ने थोरो से स्थान स्या देने फो कदा)
थोसे ने शान्त विद्ध से उत्तर दिया कि जय तक गीवा मेरे पास दै, प्म तक मुझे
किसी का भय नदीं। गीता पर इतनी अटछ भ्रद्धा रखनेदाले इस विचारक फा
असर गांघीशी पर भी पढ़ा है।
थयो फे समाम दो प्रख्यात एमसन नाम फा अमेरिकन दत्त्वज्ञानी गीता फो
सानवजाति की एक घहुमूल्य संपत्ति मानता था और उसे मेसा साय रण्वा ।
८ सर्वेभूतस्थमात्मानं सवभूतानि चात्मनि” ( ६२५ ) इस श्छोक को जब जब वह्द
पढ़ता, तथ तब उस का शरीर रोमाज्वित हो जाता ।
दूसरे देश भौर अन्य घमबारों को छोड़कर अब दम अपने देश भौर जीवन
फा विचार फरते दै । इस जोर तो नजर सभ से पहले मद्गात्मा गांधी पर पड़ती
है। गोता गांधीजी फा परमत्रिय प्न्थ दै। उन को प्राथना में सांख्ययेग अध्याय
में फद्दे हुए स्थितप्रज्ञ के छत्तण प्रति दिन गाये जाते हैं। इस प्राथना में द्ोनेवाले
गीवागु जन का उन्नत पमानेवाठा अपाधिव मसर प॑ जवादिरछाल जैसे नारितक
के মল पर भी पढ़ां। इस वात को पण्डितजी ने अपनी भात्मकथा में स्वीकार छियां
है। भ्रद्दा जास्तिक गांधीजी का कथन है कि जब जब मुसीचतें मुझे घेरती हैं, तव
অন ই गीवाभावा फी शरण मे दौड़ जाता हूँ।
कवि न्हानालाक ( गुजरात के प्रख्यात कबि ) ने “ गुजरा” नाम फे अपने
काच्य में एद्दा है कि गुजरात का मानस गांघी के निष्काम गीताजीवन से ओोतओोत
है। अरविन्द घोप के पूर्णयोग की भूमिका भी गोता की ही है। छोकूमान्य
विक ने पने फाराघांस के समय गोता के कमयोग फा जो महस्व सममाया था
उस का स्मरण दिंदुत्तानियों को क्षमी तक है। अंग्रेजीशिक्षण में पत्ने हुए दमारे
ये तीनों राजनीतिज्ष गोता के भक्त थे और सच्ची प्रेरणा के छिए उसी की और
देखते ये।
यिश्लॉसफिस्टों ने--विशेष कर एनी विसेंट ने भी हमारे आर्यधत फो
समझाने का प्रशंसनीय प्रयत्न किया है। इसी एनी विर्सेट के किये हुए गीवा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...