तर्क से वेद का अर्थ | Tark se vaid ka Arth

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Tark se vaid ka Arth  by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुराण और वेद । १७ बयोंकि इस अवृत्तिझा परिणाम सब जातियोंकी गाधाओपर एक जैसा ही हो गया हे । इन कथाओंका विचार करनेके समय कथाओंके सामान्य स््रूपका ही विचार करना होगा । क्यों कि सब कथाभोसें जो सामान्य स्वरूप होगा वह ही मूल वैदिक हो सकता है, इसको छोड़कर जो मिलावट होगी चह उन छेखकोंकी होगी । इस प्रकार विचार करनेसे इन गाथालओंसें किस जातिनें कौनसी मिठावट की है और उसका मूलरूप क्या था, इसका शी स्वयं पता लग सकता है। ओर इस प्रकार सब चाहें जब सन्मुख रहेंगीं, तब उस परिणामका स्वीकार हरएकको करना ही होगा । क्योंकि इस प्रकार किया हुमा खंडन अथवा मंडन दुराअहसे दूपित नहीं होगा, परंतु सदाग्रहणसे ही होगा 1 न इन कथाओंके तीसरे वर्गसें उन कथाओंको रखना होगा कि जिनका संबंध एुक एक जातिके साथ ही होगा । इस चर्गेकी कथाओंका विचार करनेकी हमको कोई आवइयकता नहीं है; क्योंकि चद्डुधा इन कथाओंका संबंध चेदभंत्रोंसे नहीं दोगा । जो कपोठकलटिपत गाधाएं हुआ करतीं हैं उनका लक्षण यह ही है । परंतु तच तक ऐसी कथाओंको प्रथकू करना कठिन है, कि जब तक पद़िले दो वर्गकी कथाओंकां संग्रह न हुआ होगा । एवॉंक्त दो चर्गोकी कथाएं एकन्रित होनेके पश्चात्‌ जो दोप रह जायगीं वह स्थानिक कथाएं होंगी । स्थानिक लोग ही उनका विचार कर सकते हैं । जो विद्वान पौराणिक कथा भोंका विचार करना चाहते हैं उनको उचित है कि वे सबसे प्रथम इस अरकारकें साधन अ्ंथकी तेयारी करें । यदि सब संसार- भरकी कथाओंका सिचार और संमहद नहीं हो सकता, तो फ्रमसे कस पुराणों और उपपुराणोंमें जो कथाएं हैं उनका उक्त प्रकार संग्रह यहां दी हो सकता है। इस कार्येके लिये एक एक चिट्वाचको एक एक पुराणका अस्पास करनेके कार्यस अपने लापकों समर्पित करना चाहिए, जब एक एक पुस्तकका अध्ययन उत्तम रीतिसे समाप्त होगा, तब उसकी उत्तम विपय सूची बनाई जा सकती है और पश्चात्‌ उक्त भकारका कथासंग्रह उक्त चगीके अजुसार बनाया जा सकता है 1 याठ्कॉंको तथा लेखकोंको यहाँ बिचार करना चादिए कि कथालओंका दे ही ग




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