राजस्थान के इतिहास के स्रोत | Rajasthan Ke Itihas Ke Srot
श्रेणी : इतिहास / History, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.14 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुरातत्व सम्बन्धी सामग्री ६
उसके निकट ही गाड़ दिया जाता था श्रौर उसको मोती के हार, ताम्वे का लटकन,
मूदुमाण्ड, माँस झादि उपकरणों सहित दफनाया जाता था । ये स्थिति मृत्त निवर्तन
के सम्चन्च में हमें श्रन्य देशों में भी प्रागं तिहासिक काल में मिलती है । खाद्य पदार्थ
ग्रौर पानी हाथ के पास होते थे श्रौर मूर्तभाण्ड पीछे रखे जाते थे ।
तृतीय काल के एक कंकाल पर ईटों की दीवार भी यहाँ मिली है जो समाधि बनाने
की चोतक हैं ।
मिट्टी के वतन
ये उपकरण द्वितीय व तृतीय चरण की वागोर की सम्यता के प्रतीक हैं
द्रत्तीय चरण के मिट्टी के वर्तनों के श्रवशेपों का रंग मर्टर्मला है श्रौर वे कुछ मोटे
भ्रौर जल्दी टूटने वाले हैं । इनकी प्रचुरता इस वात का प्रमाण है कि यागोर
निवाती कृपि का प्रयोग जान गया था । ये वतन शरावले, तश्तरियों, कटोरों, लोटों
यालियों तथा तंग मुंह के घड़ों और वोतलों के रूप में मिलते हैं । अरब मानव के खाद्य
पदार्थों व संग्रह के उपकरणों में विविघता गई थी श्रौर सम्यता का विकास हो
गया था । ये भाण्ड रेखा वाले तो होते थे परन्तु इनमें म्रलंकरण का श्रभाव था । ऊपर
से लाल रंग इन पर शोभा के लिए लगा दिया जाता था परन्तु भीतर का भाग काला
व कच्चा रहता था । थे भाण्ड हाथ से बनाये जाते थे ।
तृतीय चरण के भाण्ड पतले व टिकाऊ होते थे तथः इनको चाक से बनाया
जाता था । इनमें रंग व रेखाएं तो होती थी परन्तु की प्रचुरता श्रव तक
इनमें नहीं श्राने पाई थी ।
ाबूपण |
बागोर सम्यतता में श्राभूपणों का प्रयोग प्रथम सम्यता के चरण से ही दिश्लाईड
: देता है । ये ग्राभूपरण मोतियों के रूप में ग्रधिक दिखाई देते हैं । हार तथा कान के
लटकनों में मोतियों का प्रचुर प्रयोग होता था जो पाल्पदम (2४816), इच्द्रगोप
तथा काँच के वनते थे । इनको वागे में पिरोकर पहिना जाता था । ताम्रपट
भी हार के लटकन के काम करते थे जेसाकि कुछ यहाँ से प्राप्त उपकरणों से सिद्ध है ।
लाल व पीले गेरू के जो श्रनेक द्रुकड़े मिले हैं वे भी इस वात के साक्षी हैं कि वागोर
निवासी झ्रलंकरण के लिए इन रंगों को काम में लाते हों ।
गृह के श्रवशेष
वागोर संस्कृति के ययोतक कुछ घरों के घ्रवशेप भी हैं जो द्वितीय तथा तृतीय
चरणा के काल के हैं । घरों को नदी के चट्टानों के पत्थरों को तोड़ कर बनाया जाता
था । इन्हें चपटे श्रोर चौड़े दीवारों में लगाया जाता था । इनकें साथ नद्दी के गोल
पत्थर भी लगाये जाते थे । घरों के फर्ण को पत्थरों को जमाकर समतल वना दिया
जाता था । इन फर्शों पर छोटी-मोटी अनेक हृट्टियों के ट्रकड़े मिलते हैं जिनके साथ
पत्यर के हृधोड़े भी देखे गये हैं । इससे प्रमाखित होता है कि यहाँ के निवासी इन
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