जैन - शिलालेख - संग्रह भाग - 5 | Jain - Shilalekh - Sangrah Bhag - 5

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ जैन-क्निकारुेख-संग्रह महाराष्ट्र में प्राप्त लेखों में लगभग एक चौधाई तथा জাল্স মী সাল সা सभी रेख कन्नड भाषा में है । (इ) उद्देशध -इन लेखो में दो ( क्र० १ व २) गुहानिर्माण के, ४० मन्दिरनिर्माण के तथा ५० आचायोँ व श्रावको के समाधिमरण के स्मारक है । ४० लेखो में जन मन्दिरो व आचार्यों को दिये गये दानो का वर्णन है । एक-एक लेख में ब्रत का उद्यापन, दानशाला का निर्माण, कुए का निर्माण तथा दो भट्टारको के विवाद का निपटारा यह वर्ण्य विषय है।' लगभग ५० लेखों में यात्रियों के नाम अकित है । सब से अधिक १७५ रेख मूतिस्थापना के विष्यमे है । (दै) समय--सब लेख समय क्रमानुसार रखे गये है । इन मे सव से प्रातन सन्‌ पूर्व दूसरी सदी का है। शताब्दी क्रम से लेखो की सख्या इस प्रकार है--सन्‌ पूर्व दूसरी सदो १, सन्‌ पूर्व प्रथम सदी १, ईसवो सन्‌ की चौयी सदी १, सातवी सदो ३, आठवी सदी २, नौवी सदी ५, दसवी सदो १३, ग्यारहवी सदी ४४, बारहवी सदी ६०, तेरहवी सदी ४३, चौदहवी सदौ १४, पन्दरहवौ सदौ ३७, सोलहवी सदी २१, सत्रहुवी सदी २४, अठारहवौ सदौ ११ तथा उन्नौसवी सदी २२। अन्तम दिये गये ६९ ठेखो के समय का विवरण नहो मिल सका । कई ठेखो का समय लिपि के स्वरूप को देख कर पुरातत्त्व विभाग के अधिकारियों ने जैसा बताया है वैसा ही यहां नोट किया गया है। यह एक डेढ़ शताब्दी से बागे-पीछे का हो सकता है। जित लेखों में लिपि के आधार पर समय बताया ह उन से कोई निष्कर्प निकालते समय यह बात ध्यान में रखनी चाहिए । (ड) लेखों के कुछ भ्रुख्य प्राप्तिस्थान--इस सकलन के लेखों का काफ़ी बडा भाग चार स्थानो षे प्राप्त हुआ है । १ क्रमश लेख क्रमांक ११८, १७३, २४३ तथा ३०४ ।




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