सत्यार्थ यज्ञ: | Satyarth Yagya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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अजित प्रसाद - Ajit Prasad
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शिखरचन्द जैन - Shikhar Chand Jain
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पूरव चौरासी लाल श्रावल१ चिन्द् वेल गनीजिये।
सर्वार्थं सिद्धि विमाने दय श्रादिनाथ कीजिये ॥
दोहा
सो आदीश्वर जगतपति, सब जोबन रक्तपांल ।
যুক্ষলি বলা कंथवर, श्राश्नो इषां विशाल 1
भ्रीं प्रीदृषरमनाथजिनिन्द्र । शत्रावतरावतर संबोषट् ( इ्थाह्याननं †
झज गए तिषठ ठः ठः ( स्थापनं ) भत्र ममसक्निहितो सव भव वषटू ( संन्निवीकरएं )
द्रतविलंबित
परम नीर सुर्गंध॑ नियोजित, मधुर बाणिन भौर सुर्ग जितें ।
कनक भाजन ले भरि हाथमें, करि त्रिशुद्ध जजों रिपिनाथमे ॥
ओशो ओआीवृपज्ञन, तजिनन्द्राय जन्मअएमृत्युविनाक्षनाय जच नित्रपाप्रीति स्वाहावा
चंदन बावन बाम घसो मयो। हिमपरार खुभमिश्रित सो लया ।
कनक गात्र भरों धरि हाथनमें । करि त्रिशुद्धश/ जजों रिप्नाथ में ।
গীলা সাখুঘপলাএপিঈলযাঘ লহ্াশাঘজিলাহালা चन्दनं निर्वेपामीति स्वाहा।
अभक्ष अक्षत राजन भोगके | गुलकर लब्जित तज्जित सोकके ।
सुभग भाजनमें ले हाथमें | कर च्रिशुद्ध जजँ रिषिनाथ में॥
शना क्षा श्रावप्रभनाथजिनेंद्राय अज्ञयपरपाप््ये अच्षतावू निवंपाभीति स्वाहा ।
कलप पादपते५ उपजे भये। परमगंध प्रसारित ते लये।
हरप पूपेक लीजिये हाथमें । करि शब्रिशुद्ध जजों रिषिनाथ में।॥
धो हीं क्रावूषभदाधजिनेस्द्राथ कापवाणविभाशनाय पुष्प॑ निर्वपाभीतिस्वाहा |
१९ रायु, २ कपूर, ३ मन, वचन, कायक शुदि, ४ मोती, ५ वृक्त,
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