जैन बौद्ध तत्त्वज्ञान | Jain Bauddh Tattvagyan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३
(३) प्ृ० १४८ सीहसुत्त (अ० नि? ८, १, २, २ )---
४एक समय मगवान वेश्ाहीमें थे....उस समय निगेले (जनो )
का श्रावक सिह सेनापत्ति उस्त सभामें कं था....नत्र सिंह सेनापति
जहां निगठ नाथपुत्त थे वहां गया |
सिह ! तुम्दारा कुछ दीवकाल्से निर्मेठोके लिय प्याउकी तरह
रहा दे | उनके जानेपर पिड न देना ऐसा मत समझना |
(४) ४० २२८ चूलदुः:ख खनन््ध छुत् (म०नि० १: २: ४)
“एक समय में राजगृहके गृद्धकूट पर्वत्तपर विद्वार करता धा
उस समय बहुतसे निगठ ( जैन साधु ) ऋषिगिरिकी काल शिलापर
खड़े रहनेका बत ले तीन वेदना चेर रहे थे |
निंगठो | तुम क्यों चेदना झेल रहे हो? तत्र उन निगंठोने कहा--
<: निंगठ नातपुत्त (जैन तीर्थंकर मद्दावीर ) सर्वज्ञ, सर्मदर्शी, आर्प
अखिल ज्ञान दशनको जानते हैं | चलते, खड़े, सोते, जागते, सदा
ईनिर्तर (उनको) ज्ञान दान उपस्थित रहता दे |
(५) पृ० २६६-महासकुटुराये-छु्च-( म० नि० २: ३:७)
““राजयुद्में वर्षाषासके लिये आए हैं। निर्गंठ नाथ-पुत्त |?
(६) ए० २८० चूड सुकुलदायि सुत्त-म० नि० २-३-९)
कौन ईैं-सर्वक्ष, सर्यदर्शी, निखिल्ज्ञानसम्पन्त होनेका दावा कग्ते
हैं। मते-निगंठनाथपुत्त ।
(७) ए० ३४१ देवददछुच ( म० नि० ३: १: १ )
उन निगंठोने मुझे कहा “ निगंठनातपुत्त सर्वज्ष सर्वेदर्शा अखिल
ज्ञानदरशनक्ो जानते हैं । ??
(८) पृ० ४४५-उपालिसुच-( म० नि र: २६ ६)
उस समय निरगंठ नातपुत्त निर्गर्ठो (जेन साधुओं ) की चड़ी परि-
घद्के स्ताथ नाछंदार्में विहार करते थे |
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