शान्ति और सुख | Shanti Aur Sukh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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श्रधिक सुखौ होता । पाठक जानते ३, कि इस ग्लानि का
कारण क्वा डे › बुदिकौ अ्रपरिपक्षता हो इसका मूल कारण
है। जिस विषयको वे भ्राज जानते §, यदि प्ले से जानते
तो अमुक अरकर्तश्य भ्रौर श्रकरणोय कार्यको क्यों करते।
, विद्वान धियोडर पाकर ( 1600018 एश}, जो
अल्य वयसमें हो काल के कराल गाछमें पड गया, अपनो झत्य -
शय्यापर बिलखता हो रहा कि, “मैंने क्यों कोई ऐसा उपदेश
नहीं सुना अथवा ऐसो पुस्तक नहीं पठो, जिससे मुझे रहन-
सहन और अध्ययनका पूरा त्ञान हो जाता ।” पाठक! ऐसा
নিন্বান জব सुख-प्राप्तिकि नियमोके लिये बिलखता रहा , तो
भला दूसरोंकी क्या गणना ? भ्रव तो पाठक इन नियमोकौ
आवश्यकता समझ गये होगी ।
मनुष्यका घमं ३. कि सो डु उत्तम पदार्थ अपने पास
हों दूसरे को अवश्य टेवै । पूवं समय मे, एथेन्समे, एकं कानून
था, कि जो कोई किसी टूसरेको अपनी जलती बत्तौसे बत्ती
जलानेसे रोकता, वह सार डाला जाता था। पाठक! इस
परोपदेशका ण उपकार करनेवाले पर वदे माके का होता
है। इतिहास-परिडित झूटा्चा ( प्राध्वणा ) अपने एक
लेखमें कहता है कि, “बढ़े आदर्मियोंकी जोवनियाँ, पहले
पहल, मैंने टूसरोंके उपकार के लिये हो लिखनो आर€्म वीं,
परन्तु गये दिनोमें, में खयं हो उन जोवनियोसे लाभ उठाने
लगा। वे मेरे प्रध्ययनकौ प्रधान विषय शरीर जौवन-
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