पउमचरिउ (पद्मचरित ) [भाग-३] | Paumchariu (Padamcharit) [Bhag-3]

Book Image : पउमचरिउ (पद्मचरित ) [भाग-३]  - Paumchariu (Padamcharit) [Bhag-3]

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हंसराज बच्छराज नाहटा - Hansraj Bachchharaj Nahata

Add Infomation AboutHansraj Bachchharaj Nahata

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
तियालीससो संधि & उदछछती इहं (জী মামী विभक्त हो गई 1 ) जाधी असी सुप्रीचके पास रदी जर आधी नकटी सुघीवसे जा मिटी ॥१-६॥ [ ६) सात अक्षौहिणी सेना इधर थी और सात ही उघर | इस प्रकार वह आंधी-आधी वट गहं । अङ्ग ओर अङ्खद दोनों चीर विघटित हो गये । अङ्कः मायासुप्रीवको मिखा ओर अभङ्ध अन्द्‌ असली सुप्रीवको । दोनों शिविरोमे वे दोनों মাই নবী হী सोह रहे थे जेसे रात ओर दिनमें चन्द्र ओर सूयं सोहते हैः । वालि के पुत्र वीर चन्द्र-किरणका चेहरा सी ( कोधसे ) तमतमा उठा । वह अभय देकर तारादेवीकी रक्षा करने छगा। उसने कहा--यदि तुम इसके पास आये तो मारे जाओगे, युद्ध करते हुए तुममेसे जो जीतेगा उसे में तारादेवी सहित समस्त राज्य अर्पित कर दूँगा।” परन्तु उन दोनोमेंसे एक भी युद्धमे प्रवेश नहीं पा रहा था । इतसे में समीवने नल और नीलसे कहा कि यह तो वही कहानी सच होना चाहती है कि कोई ( दूसरा ही ) परस्त्रीका ग्रह-स्वामी हो गया । एक दूसरेको सहन न करते हुए वे छोग अपनी-अपनी तलवारे लेकर एक-दूसरेके निकट पहुँचे । वे आपसमें छड़नेवाले ही थे कि द्वाररक्षकोने उन्हें उसी प्रकार हटा दिया जिस तरह निरंकुश उन्मत्त गजोको महावत हटा देते हे । १-६॥ [ ७ | इस प्रकार नगरके छोगोके हटा देनेपर वे दोनो नगरके उत्तर-दक्षिणमें स्थित होकर लड़ने लगे । जब छड़ते-लड़ते बहुत दिन व्यतीत हो गये तो हनुमान सहसा कुपित हो उठा । (मर्मरः ५८८ चनावटी ) सुग्रीवका मानमदेन दोः यह कहकर वह सुभट सेनाके साथ सन्नद्ध हो गया । और “मारो मारो” कहता हुआ वह वहों जा पहुँचा) उसका शरीर वेग और हपेसे उछल रहा था । उसने कहा--““मामा सुघ्रीव अपने मनमे खिन्न न होओ। साया




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now