रवीन्द्र साहित्य भाग ११ | Ravindra Sahitya Bhaag 11
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देवयानी--
कच --
देवयानी--
असिशाप-गरस्त विदा : कान्य
' भूलना न गर्वमें।
सुधाते बढ़ सुधामय
डुग्थी उसका है। होता दशंनसे पापक्षय ।
मातृ-रूपा शान्ति-मूति पयस्विनी युध्रक्रानित 1
उसकी की सेव मने त्याग श्रा वृष्णा श्रान्ति।
गहन वेरनमे शस्य - दयाम खोतस्विनी तीर
फिरता रहा हू सग उसके में घर धीर
अनुदिन । निम्न तट - भूमिपर परिव्याप्त
दरित सदु হিল तृणराशि अपर्याप्त
चरती श्री यथातृप्ति, फिर अलसाई हुईं
चलती थी मन्द-मन्द লন ভি ভাই हुईं,
और किमी तस तले छाया देख सुखकर
करती रोमन्थ वेठ जाती हरी दूबपर ।
सकृतज्ञ बडी - बढ़ी आँखें निज खोल वह्
स्नेदवश मेरी ओर देख लेती रद्द - रह ,
अपनी कृतज्ञतासे দূ शन्त दष्ट द्वारा
वात्सल्यसे चाटतो थी मानो मेरा तन सारा।
स्मरण रहेगी वह दृष्टि स्निग्ध अविचल
चिकनी सुपुष्ट श॒ुत्र भरो देह समुज्ज्वल ।
क्लक्रल-वती रेणुमतीको न भूल जाना।
भूल जाऊँगा में उसे, भला यह केसे माना?
कितने ही इसुम्तित कुल - पु पार कर
आनन्दन मधुर गलेमे करू মান भर
बद्दती है यहाँ सेवा - पगी स्रासवधरू सम
क्षिप्रगति युभव्रता प्रवात - सगिनी मम।
दाय बन्धु, यहाँके अ्रवास-कालमें क्या, कह्दो,
एसी भी तुम्हारी कोई सहचरी रहो, अहो,
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