रविन्द्र साहित्य भाग १५ | Ravindra - Sahitya (bhag - 15)
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्मरण $ कविता
११
मृत्यु ~ जवनिकाके पठेत पुन लौट तुम आई
मेरे हृदय - व्याह ~ मन्दिरमे नवल - वधूकी नाई
सब्दहीन पद्-गतिसो । जितनी ग्लानि छान्त जीवनकी
सो सव॒ मिटी मरन-मजन्ते। रासि कूपके धनकी
प्रापति ই बिस्व-लछमीकी परम पाके कारन ।
मुग्ध मृदुर सुसकत सुखे चित-निश्त दीति करि धारन
ठी मई आनि चुपकेतै। ख्त्यु-द्वारके द्वारा
संसृति उरमे वटी तुम, श्रिये, प्रेमकी धारा।
आज न वाजे वजत, न जनता सजत, न उच्छव वसौ,
दिपत न दीपक-माल , आजको अर्नेद-गोरव ऐसौ
स्तन्य सान्त गस्भीर मूक्क अरु नेन-नीरमे लिमगन ।
जानत ना या बात आजकी खनत नाहि कोड जन।
मेरे उर - अन्तर अव केवल एक दीप उजरत है,
बस, मेरो सन्नीत अकेलो मिलन-गिरा খুন ই।
१२
हों करि रह्यौ आप अपनेंमें एक अपूरब अनुभव,
हो परिपूरन आज । निमिषमे तुमनें अपनो गौरव
देवि, मिलाय दियो है मोमे। ले अपने हातनमें
दहै छुवाय खत्युकी पारस-सनि मेरे जीवनमे।
भेरी सोक - जग्य - अगिनीते प्रगव्यो रूप तिहारो
नव निरमल मूरति धारन करि सुन्दर सूरततिवायै,
सती, अनिन्य सतीत्व-ज्योतितं दीप्र देह तब दरसे,
जाकों छुवत न सोक-दाह ऋछु,न कह-ुँ मलिनता परसे।
१८
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