हिंदी-साहित्य का गद्य-काल | Hindi Shahitya Ka Gadya-Kaal
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
56 MB
कुल पष्ठ :
263
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं गणेशप्रसाद द्विवेदी - Pt. Ganeshprasad Dwivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ग्रन्थ का पता चला है, जो महाराज छत्रपुर के पुस्तकालय में है ।
इनके गद्य की भाषा देखिये :---
“तन श्री महाराज मार प्रथम वशिष्ठ महाराज के चरन हह
प्रनाम करत भये । फिरि अपर बद्ध-समाज तिनको प्रनाम करते
भये ५
यह भाषा बजभाषा नहीं है, बल्कि भागवत, महाभारत इत्यादि
सुनानेवाले कथक्छडों की सी जान पड़ती ह |
यथा में गोकुलनाथ के वाद् लल्लू जी लाल के रचना-काल
तक कोई ऐसे गद्य-्थ या गद्य-लेखक का पता नहीं मित्रता,
जिसका उल्लेख आवश्यक हो । इस समय के अंदर रीति-काल के
छदं कवियों ने अपने अलंकार प्रथो में कहीं कहीं टिप्पणी के रूप
में कुछ गद्य लिखा है |
रीति-काल के निम्नलिखित कवियों के भरथो में कहीं-कहीं कुछ
गद्य मित्रता है ।
केशबदास ने कविप्रिया में कहीं कहीं कुछ गद्य लिखा है ।
चिंतामणि त्रिपाठी ने भी रीति-अंथ में कुछ गद्य लिखा है । देव ने
अपने “शब्दु-रसायन” नामक ग्रंथ में गद्य के उदाहरणाथ एक
वाक्य दिया है, जो देखने योग्य है :--
“महाराज राजाधिराज ब्रजजनसमाजविराजमान चतुदंश-
भुवनविराज वेद्विधिविद्यासामग्रीसम्राज श्री कृष्ण-देव देवाधि-
_ देव देवकीनंद्न जदुदेव यशोदाननद हृद्यानन्द् कंसादिनिकंदन
वंसाबतश श्रंसावतारसियेमणि विष्टयनयनिविष्ट गरिष्टपव्-
त्रिविक्रण जगतकारणश्रमणनिवारण मायामयविभ्रण सुर
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