हिंदी-साहित्य का गद्य-काल | Hindi Shahitya Ka Gadya-Kaal

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Book Image : हिंदी-साहित्य का गद्य-काल  - Hindi Shahitya Ka Gadya-Kaal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( & ) ग्रन्थ का पता चला है, जो महाराज छत्रपुर के पुस्तकालय में है । इनके गद्य की भाषा देखिये :--- “तन श्री महाराज मार प्रथम वशिष्ठ महाराज के चरन हह प्रनाम करत भये । फिरि अपर बद्ध-समाज तिनको प्रनाम करते भये ५ यह भाषा बजभाषा नहीं है, बल्कि भागवत, महाभारत इत्यादि सुनानेवाले कथक्छडों की सी जान पड़ती ह | यथा में गोकुलनाथ के वाद्‌ लल्लू जी लाल के रचना-काल तक कोई ऐसे गद्य-्थ या गद्य-लेखक का पता नहीं मित्रता, जिसका उल्लेख आवश्यक हो । इस समय के अंदर रीति-काल के छदं कवियों ने अपने अलंकार प्रथो में कहीं कहीं टिप्पणी के रूप में कुछ गद्य लिखा है | रीति-काल के निम्नलिखित कवियों के भरथो में कहीं-कहीं कुछ गद्य मित्रता है । केशबदास ने कविप्रिया में कहीं कहीं कुछ गद्य लिखा है । चिंतामणि त्रिपाठी ने भी रीति-अंथ में कुछ गद्य लिखा है । देव ने अपने “शब्दु-रसायन” नामक ग्रंथ में गद्य के उदाहरणाथ एक वाक्य दिया है, जो देखने योग्य है :-- “महाराज राजाधिराज ब्रजजनसमाजविराजमान चतुदंश- भुवनविराज वेद्विधिविद्यासामग्रीसम्राज श्री कृष्ण-देव देवाधि- _ देव देवकीनंद्न जदुदेव यशोदाननद हृद्यानन्द्‌ कंसादिनिकंदन वंसाबतश श्रंसावतारसियेमणि विष्टयनयनिविष्ट गरिष्टपव्‌- त्रिविक्रण जगतकारणश्रमणनिवारण मायामयविभ्रण सुर




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