लोक अदालत | Lok Adalat
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
248
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४5)
भाई, रेवती श्रोर वेहला भाई के मामले। (विशेष विवरण देखें-परीख
1973) यहां दोनों प्रणालियों में पारस्परिक प्रतियोगिता की स्थिति रही 1
इस सन्दर्भ में सरकारी विधि प्रणाली की कार्यवाही के प्रत्ति श्रादरमाव का
दर्शन होता है । उदाहरण के लिये जब वेहलाभाई सम्बन्धों विवाद के मामले
में श्री हरिवल्लभ परीख को गिरफ्तार किया यया और बाद में जनानतपरर
छोड़ा गया तो उन्होंने तमाम दबावों के बावजूद लोकग्रदालत में उस विवाद
की सुनवाई उस समय तक नहीं होने दी जब तक सरकारी विविश्रणाली
के श्रन्त्गत उस विवाद की सुनवाई की कार्यवाही पूरी नहीं हो गयी ।
रेबती के जटिल मामले में जिस कुशलता के साथ समभौता, प्रचार, सीवी
कार्यवाई एवं समाचार पत्रों के सम्मिलित माध्यमों का उपयोग किया गया,
वह लोकग्रदालत प्रणाली की “छा जाने वाली” भावता का सुजक है। यही
प्रवृत्ति, जेसा कि पहले कहा गया है, प्रतिवादी को लोकग्रदालत के समक्ष
बुलाने के लिये प्रयृकत तौर-तरीके में भी परिलक्षित होती है, जिसमें लोक-
श्रदालत की कार्यवाही में प्रतिवादी को भागीदार बनाने हेतु सरकारी विधि
प्रणाली के तंत्र का एक प्रकार की श्रनुज्ञा के रूप में उपयोग किया जाता है।
लोक प्रदालत प्रणाली को किन कारणों से यह सफलता प्राप्त हुई, इसका
विश्लेषण करें तो एक कारण तो हमें यह दृष्टिगोचर हुग्रा है कि इस क्षेत्र
में सरकारी विधि प्रणालो की उपस्थिति भ्रत्यन्त अल्प है । सरकारी विधि
प्रणाली के श्रन्तर्गत कार्यरत प्रशासनिक व्यवस्थाएं भी इस क्षेत्र से बहुत दूरी
पर स्थित हैं । यातायात एवं संचार के पर्याप्त साथनों का प्रभाव इस क्षेत्त
के लोगों को इस प्रणालो से पुथक रखे हुए है। (देखें अव्याय 4) । तीसरा
कारण यह है कि लोकग्रदालत द्वारा किये गये विवादों के निर्णयों से प्रभावित
होकर क्षेत्र के अधिकांश निवासी यह महसूस करने लगे हैं कि लोकप्रदालत
प्रणाली द्वारा निष्पादित न्याय गुणात्मक दृष्टि से सरकारी विधि प्रणाली के
प्रन्तगेत उपलब्ध ক্যান से कहीं श्रधिक 'प्ंतोपयुकत' है। श्रासान पहुंच,
तत्परता श्रौर कम खर्चो के अ्रलावा इन कारणों का भी अपना महत्त्व है--
लोकग्रदालत प्रणाली की सफलता का एक आधारभूत कारण यह् प्रतीत
' होता है कि विवाद का निपटारा करने के लिये प्रयुतत इसकी कार्य-पद्धति
भ्रत्यन्त जनतांत्रिक है। (देखें श्रध्याय 10 और 11) लोकप्रदालत द्वारा
विवादों के निपटारों के लिये महत्त्वपूर्ण प्राधारभूत मूल्य के रूप में समुदाय
को भागीदार बनाने की जो नीति अ्पनाई जाती है झौर उस प्रक्रिया एवं
कार्य विधि का जिस ढंग से गठन किया गया है, उनसे सामुदायिक भागीदारी
के मूल्य की अधिकतम उपलब्धि हुई है। जनसमुदाय की इस ढंग की श्रेष्ठ
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