जातक भाग १ | Jatak Part 1

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Jatak Part 1 by मदन्त आनंद कौसल्यायन - Madant Aanand Kausalyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १३ 1 आत्मा नाम का कोई नित्य ध्रुव, भ्रविपरिणाम स्वभाव वाला पदार्थ नही है । कम से तथा (अ्रविद्या श्रादि) क्‍लेशों से अ्रभिसंस्क्रृत पञचस्कत्ध मात्र ही पूर्व-भव संतति क्रम से एक प्रदीप से दूसरे प्रदीप के जलने की तरह गर्भ में प्रवेश पाता है। इसी प्रकार राजा मिलिन्वः ने महास्थविर नागसेन से प्रश्न किया--- यदि संक्रमण नही होता तो पुनर्जन्म कंसे होता है ? हाँ महाराज, बिना संक्रमण हुए पुनजेन्म होता है । १. भन्ते, सो कंसे होता है ? कृपया उपमा देकर समभावं । महाराज ! यदि कोई एक बत्ती से दूसरी बत्ती जला ले तौ क्या यहाँ एकं बत्ती दूसरी मे संक्रमण करती हं ? नही भन्ते ! महाराज ! इसी तरह विना संक्रमण हुए पृनजैन्म होता है । २. कपया फिर भी उपमा दे कर समवे ? महाराज | क्या आपको कोई इलोक याद है जो आपने अपने गुरु के मुख से सीखा था? हाँ, याद है । महाराज } क्या वह इलोक ग्राचाय्यं के मुख से निकल कर आपके मुख में घुस गया ? नहीं भन्ते ! महाराज ! इसी तरह बिना संक्रमण हुए पुनजेन्म होता ह । भन्ते ! श्रापने मरच्छा समाया । फिर राजा बोला--मन्ते ! एसा कोई जीव हं जो इस शरीर से निकल कर दूसरे में प्रवेश करता ह? नहीं, महाराज । ` रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार, तया विज्ञान । ` राजा भिलिन्द का समय ई० पु० १५० है । `श्रात्मा का एक शरीर को छोड़ कर दूसरे को धारण करना।




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