भाषा - विज्ञान - सार | Bhasha - Vigyan - Saar

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Bhasha - Vigyan - Saar by राममूर्ति मेहरोत्रा - Rammurti Meharotra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रारंभिक ज्ञान \ ७ सभ्यता का ज्ञान प्राप्त कर सकते ई । जनविज्ञान फी नीव इसी प्रकार पढ़ी । भारत ओर यूप की मूल जातियों की दशा का ज्ञान भाषा-. विज्ञानियों ने भारत तथा यूडप की भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा ही प्राप्त किया है | प्राचीन भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन में हमको पुराण और घार्मिक ग्रथों का भी अवलोकन करना पड़ता है जिनसे हमको मनुष्यों के धार्मिक विचारों तथा पौराणिक गाथाओं के स्वभाव, उत्पत्ति; विकास श्रादि के विषय में बहुत सी चातें शात हो जाती हैँ। मत- विज्ञान और पुराणविज्ञान की नींव इसी प्रकार पड़ी है। इधर भाषाविज्ञान में जो महत्वपूर्ण कार्य हुआ है वह है घ्यनितत्व की उन्नति । सूक्तम यनो फी सहायता से ध्वनिर्यो फा गरे से रहरा विवेचन किया जा सफता है। आज उचारण में होनेवाले वायुकंपन गिने जा सकते हैं, उदात्तादि स्वरों में ध्वनि के उठने और गिरने के आपेक्षिक तारतम्बय की माप की जा सकती है, वर्णों के मध्य में श्राने- वाली ऋ्णिक श्रुतियों फा स्वरूप निर्धारित किया जा सकता है और विद्यार्थी शिक्षक के उच्चारण फो ध्यानपूर्वक सुनकर अनुकरण ण्रने के अतिरिक्त यह भी जानता है कि किसी वर्शविशेष के उच्चारण में उसके उच्च्ाध्णोपयोगी शरीर के अवयवो फो क्रिस स्थिति मे रक्खे | विदेशी भाणनओ्रों की दोषयुक्त लेखनप्रणाली के ठीक ठीक उच्चारण कते लिये अनेक ५11९८६1८ [২৪,090 वन गई ह 1 श्राजकल का विद्यार्थी 'संशयः और “नहीं? के अनुस्वार! ( ” ) का भेद 2৯027 भण कौर ००८ के सघोष श्चौर श्रधोप शका भेद श्रादि च्छ्म वातं भली भोति जानता ই। (ख ) भाषाविज्ञान कां इदस भारतवर्ष विद्या तथा सभ्यता का प्राचीन केंद्र रहा है। मापा- विद्धान फी नीव श्यी यहीं पड़ी | प्राचीन काल में विद्याध्यवन घार्मिक




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