श्री जवाहर साहित्य समिति | Shree Jawahar Sahitya Samiti

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Shree Jawahar Sahitya Samiti by श्री साधुमार्गी जैन - Shree Sadhumargi Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(€) स्वीकार किया। पिता ने विचार किया--खधक ने आज तक किसी प्रकार का कष्ट सहन नहीं विश है । अतएव मुझे ऐसी व्यवस्था कर देती चाहिए कि उसे' क़िसी प्रकार का उपद्रव न सतावे ।' इस प्रकार विचार करके पिता ने पुत्रमोह से प्रेरित होकर पाच सौ सेनिकों की व्यवस्था कर दी । ऐसा प्रवसन्ध किया गणा कि खधकजी को इस बात का पता न लगे मगर उनकी गठरावर रक्षा होती रहे । सैनिक गुप्त रूप से खधक मुनि के साथ रहने लगे। खधक मुनि को इन रक्षक सैनिकों का प्ता वही था । वह्‌ तो यही नान्ते कि मेरी रक्षा करते वाला मेरी आत्मा ही है, दूसरा कोई नहीं हैं। इस प्रकार खबदा मुनि तपश्चरण करके आत्मकल्याण करने लगे ओर आत्मा को नावित करते हुए ग्रामानुग्राम विचरने लगे । 7 15 =| ৯ 1৯ विहार करते-करते वे अपनो सार रावस्था की वहिन के राज्य में पधारे। उनके पीछे गुप्त रूप से चले अल वाले सैनिक विचार करने लगे-अब खधकजी अपनी वहिन के राज्य मे आ' पहुचे है, अव किसी प्रकार के उपद्रव की सम्भावना नहीं है । इस प्रकार निष्चिन्त होकर सैनिक अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार दूसरे कार्यो से लग गए । इघर खधक मुत्ति आत्मा और शरीर हा भेद विचान हो जाने के कारण तपण्चरण द्वारा शरीर को सुखाकर आत्मा को बलवान वनाने से लगे है। एक वार खघक नुनि भिक्षाचारी कर्ने के लिये राज- महल के पास से निकले । उस समय राजा ओर रानी राजनहल कौ अटारी पर वेठ कर नगर- निरीक्षण करने के माथ ही साथ




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