जैन तत्व निर्णय भाग 1 | Jain Tatva Nirnaya Bhag 1

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Jain Tatva Nirnaya Bhag 1 by श्री साधुमार्गी जैन - Shree Sadhumargi Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[২ , प्र०--मिद्ध भगवान कहा रहते है ? ০ © ० १९ १२९ ष्ट १५ उ०-मिद्ध्षेत्र मे) प्र०- सिद्ध क्षेत्र कहा पर है ? उ०-छोक के शिरोभाग पर व अलोक के नोचे । प्र०-- श्री सिद्ध भगवान के हाथ कितने है ? उ०्-एक भी नही है । प्रः--सिद्ध भगवान यहा कवं आवें ? उ०-यहा नही आवें, क्योकि उनको यहा आने का कोई कारण ही नही है । प्र०-भरिहूत देव का अर्थ क्या है ? उ०--कर्म रूप छात्रु को हनन करने वाले देव याने पैवलज्ञानी । प्र०-फर्म फ्रिसे कहते है ? उ०-जीव को जो घारो गति में रुछाता है और समार फे चुस-दु ख का मूल कारण है, उसको कम कहते हैं। प्र०-पर्म कितने प्रकार के है व कौन-कौन से हैं ? उ०--आठ प्रकार के, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेद- नीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र, अन्तराय । प्र०-फर्मों को तुमने देखा है ? उ०-नही, अपन उनको नहीं देख सकते है । प्र०- तुम्हारे पास कितने कर्म है ? ভত্- সাত । प्र०--सिद्ध भगवत के पास फितने कर्म है ? उ०-एवक भी नहीं । प्र-भरिहत देव के पास किलने कर्म है २ उ०-चार দম ।




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