कृष्ण मेरी दृष्टी में | Krisna Meri Dristi Me
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22.49 MB
कुल पष्ठ :
579
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पृ रिक्त अन्य कुछ नहीं। उसका उद्देश्य अखण्ड आनन्व में जीवन की आध्यात्मिक परिपुर्णता की ब्यजना करना ही है । भक्त कवियों ने उस आनन्द का रूप स्त्री- पुरुष के रति-भाव में कल्पित किया हैं - श्रीकृष्ण परम आनन्दरूप में परम पुरुष हैं और उनकी पराशक्तिरूपा राधा है जिनके सयोग मे ही परमानन्द की पूर्णता सिद्ध होती है। हिंदी साहित्य कोश सागर ऐतिहासिक दृष्टि से कृष्ण का उल्लेख विशेष रुप से ऋग्वेद छादोग्य उपनिषद् ब्राह्मण ग्रयो बौद्ध जातक कथाओ विभिन्न पुराणों भागवत और महा- भारत में मिलता है जिनमे से बैदिक साहित्य के कृष्ण तो भागवत और महाभारत दोनों के कृष्ण से सर्वधा भिन्न हैं पर शेष ग्रथो के वर्णनों मे किसी के कृष्ण भागवत के लीलामय तथा आनद-विलास-प्रिय कृष्ण से मिलते है तो किसी के महाभारत के योगेश्वर कृष्ण से । परन्तु भाश्चये की बात यह है कि पुराणों में कृष्ण की एक सर्वाधिक प्रिय परमसुदरी गोपी का उल्लेख तो मिलता है पर राधा वहां कही नहीं है । राधा का सर्वप्रथम उल्लेख हाल रचित गाटा सत्तसई नामक प्राकृत भाषा के प्रथ में मिलता है जिसे कुछ विद्वान प्रथम शताब्दी और कुछ सातवीं शताब्दी ईस्वी का मानते है । ऐसे ही कुछ कारणों से चितनशील व्यक्तियों के मन में कृष्ण सम्बन्धी अनेक प्रश्न समय समय पर उठने रहे है और विभिन्न धर्माचायं एवम् साहित्याचायं उनका समाघान भी अपने ढग से करते रहे है । ऐसे ही प्रश्तो का समाधान आचार्य रजनीश ने भी अपने मनाली कुल्लू २६ सितम्बर १९७० से ५ अक्तूबर १९७० के साधना शिविर मे किया था । उन्ही प्रबचनों का सग्रह प्रस्तुत ग्रथ में हुआ है और उन्हे प्रश्नोत्तर रूप में ही प्रकाशित किया जा रहा है । भाचार्य रजनीश एक भतर्ज्ञनी मत्र-द्रष्टा युवा ऋषि है । वे दार्शनिक गुत्थियों को तो चुटकियों मे सुलझाते ही है जीवन की अन्य ज्वलत समस्याओं की भी जैसी सरल तकंपूर्ण भर वैज्ञानिक व्याख्या करते हैं वह उनके पाडित्य की अपेक्षा अतदृष्टि की ही अधिक परिचायक है । चाहे राजनीति का प्रसंग आ जाए चाहे समाजशास्त्र का चाहे शिक्षा की समस्या हो चाहे सैक्स की चाहे व्यापारिक महत्व का विषय हो चाहे विज्ञान का उनकी व्याख्या सम्बन्धित विषय की नवीनतम जानकारी से युक्त होती है और उसका भाधार प्राचीन शास्त्रोक्तियों का अन्थानुकरण न होकर वैज्ञानिक विश्लेषण और ताकिक विवेसन ही होता है। विभिन्न विषयों की ऐसी तलूस्पर्शी व्याख्या कोई अतवूंध्टि प्राप्त ज्ञानी महात्मा ही कर सकता है पुस्तकीय जानकारी बटोरनेवाला पड़ित नहीं । वे अत्यत
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