कथाकोष प्रकरण | Katha Kosh Prakaran

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Katha Kosh Prakaran  by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ख० बावू श्री बहादुर सिंहजी सिंधी और सिंधी जेन ग्रन्थमा ला भैः -#& [स्मरणा ञ्ञ তি ] फक मेः অনন্য भादर्श पोषक, कार्यसाधक, उत्साहग्रेरक और सहृदय खेहास्पद यावू भी बहादुर सिंहजी सिधी, जिन्होंने मेरी विशिष्ट प्ररणासे, अपने स्वगेवासी साधुचरित पिता भी डारूचद्जी सिधीके पुण्यसररण निमित्त, इस “सघी जन ग्रन्थमाला' की कीर्तिकारिणी स्थापना करके, इरेः शये प्रतिवर्ष हजारों रपये खर्च करनेकी भादर उदारता प्रकट की थी; और जिनकी ऐसी भताधारण श्ानमक्तिकिः साथ अनन्य आर्थिक उद्ारबृत्ति देख कर, मने भी अपने जीवनका विशिष्ट शक्तिशाली ओर बहुत ही मृत्यवान्‌ू जयशेव उत्तर काऊ, हस अन्थमाछाके ही बिकास और प्रकाशक छिये सवात्मना रूपसे समर्पित कर दिया था; तथा जिन्होंने इस अन्थमाफछाका विगत १३-१४ वर्षोें ऐसा सुंदर, समृद्ध और सर्वादरणीय कार्यफल निष्पन्न हुआ देख कर, भविष्यमें इसके कार्यक्रो और अधिक प्रगतिमान तथा विस्तीर्णं रूपमे देखनेकी अपने जीवनकी एक मात्र परम अभिराषा रखी थी; ओर तदनुसार, मेरी प्रेरणा और योजनाका अनुसरण करके प्रस्तुन ग्रन्थमालाकी प्रबम्धाध्मक कार्यव्यवस्था भारतीय विधाभवन' को समापित कर देनेकी महती उदारता दिखा कर, जिन्होंने इसके भावीके सम्बन्धमें निश्चित ह्रो जानकी भाशा की थी; बह पुण्यवान्‌, साहिष्यरसिक, उददरारमनस्क, शष्धताभिलापी, अभिनन्दनीय आत्मा, अब इस ग्रन्थमाझाके प्रक्ाशनोंको प्रत्यक्ष देखनेके छिये इस संसारमें विद्यमान नहीं हे । सन्‌ १९४४ की जुछाईं मासकी ७ वीं तारीखको, ५९ वर्षकी अवस्थामें वह सह्दान्‌ आश्मा इस छोकमेंसे प्रभ्यान कर गया । उनके भव्य, आदरणीय. म्णहगीय, और छाघनीय जीवनकों अपनी कुछ खेहात्मक “स्मरणां ज लि? प्रदान करनेके निमित्त, उनके जीवनका थोडासा संक्षिप्त परिचय आलेखित करना यहाँ योग्य होगा । लिंघीजीके जीतनके साथके मेरे खास स्वाम स्मरणोका विस्मृत आङेखन, मनि उनकै ही “स्मारक দ্য” के रूपमे प्रफानित किय বাধ 'লাহনান विद्या! नाभक पत्रिकाके तृतीय भागकी अनुपूर्तिमें किया है । उनके सम्बन्धं वेप जाननेकी हच्छा रखने वाह वाचकोंको वह स्मारक मन्ध देखना चाहिये। চর वाबू भरी बहादुर लिहजीका जन्म बंगाछके मुश्शिदाबाद परगनेमें स्थित अजीमग्गंज नामक स्थानमें संवत्‌ ११४१ मे हुभाथा। वह बाबू डाछचंदजी सिंघीके एकमात्र पुत्र थे । उनकी माता श्रीमती मझ्नु- कुमारी ध्जीमगंजके ही बद कुट्म्बके बाबू जयचंदजीकी सुपुत्री थी । श्री मन्नकुमारीकी एक बहन जगतसेठजीके यहाँ व्याही गई थी और दूसरी बहन सुप्रसिद्ध नाहर कुटुम्बमें व्याही गहे थी । कछकत्ताके ও सुप्रसिद्ध जन स्ारर ओर नग्रणी व्यक्ति वाबू ঘুংগর্ববতী লাক, बाबू बहादुर सिंदजी सिंघीके मिरे माह थे । सिंघीजीका ब्याह बालुचर-अजीमगंजके सुप्रसिद्ध धनाव्य जेगगृइस्थ झदमीपत सिहजीकी पात्नी ओर छन्नपत सिंहजीकी पुत्री श्रोमती विककमुंद्रीके साथ, संचद्‌ ३९७४ में हणा था! इस ग्रक्ार श्री बहादुर सिंहजी सिधीका काटुम्बिक सस्बन्ध बंगाऊक खास प्रसिद्ध जन कुदुम्बोंके साथमें प्रगाठ रूपसे संकलित था । बाबू श्री बहादुर सिंहजीके पिता बाबू डालचंदजी सिंघो बंगाऊके जैन महाजनोंमें एक बहुत ही अ्सिद्ध ओर सश्चरित पुरुष हो गये हैं । वह अपने अकेले स्वपुरुपाथ और स्वउद्योगसे, एक बहुत ही साधारण स्थितिके व्यापारीकी कोटिस्रेंसे कोव्यचिपतिकी स्थितिको पहुँचे थे और सारे बंगाऊमें एक सुप्रतिष्टित भौर प्रामाणिक ब्यापारीके रूपसें उन्होंने विश्िष्ट स्याति प्राप्त की थी । एक समय वे बंग्राकके सबसे




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