मन्मथनाथ गुप्त प्रतिनिधि कहानियाँ | Manmathanath Gupt Pratinidhi Kahaniyan

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Manmathanath Gupt Pratinidhi Kahaniyan  by कमल किशोर गोयनका - Kamal Kishor Goyanka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- आशा-निराशा / 17 गहिला से क्या चाहता है ? छि' ! बह कहां से क्य पहुँच गया। রি আহ মন वारीकी টার करने पर हक अपने को दोषी नदी पाया 1 दिसी सुन्दरी कुमारो से {बव उमने अपने मन ८ प कर लिया था, कि वह सुन्दरी कुमारी है) प्रेम करना, यदि वास्तव में प्रेम ही हो दो, बुरा थोड ही है । नहीं, इस सम्बन्ध में वह कोई समझौता करने के लिए ৮ नही था। बह कोई आवारा थोडे ही था । उसने देश-सेवा की थी । जब-जव गाँधी- जी ने, देश हे, कांग्रेस ने आह्वान किया था, तब-तब वह जेल गया था | जब जब कि देश सतन्त्र हो गया था, तो उसने नौकरी कर ली थी। মামদা इसी तरह चलता रहा । रमेन्द्र नित्य उसे देखता रहा। वही पंच- बुइयाँ रोड प्र चढ़ना, और निदिष्ट जगह पर उतरना, यही उत्त स्त्री का नित्य का कार्यक्रम था। बहुत दिन वीत गये, पर उस स्त्री के सम्बस्ध में দ্র के ज्ञान म तनिक भर वृद्धि नही हुई 1 बल्कि वह्‌ उसकी दृष्टि में अधिकारिक रहस्यमयी होती गो । पर इस कारण उसके सम्बन्ध में उसका 'कौतृहल घटा नही, बल्कि 'उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया । तटस्थ कौठृहल बह नही था, सजीव कौतूहल या} एक दिन छुट्टी का समय काटने के लिए, रमेस्द सर चाँदनी चौक की सैर के लिए चला गया । कख चीने भौ नैनी थी । टहलने-टहतत वह थक गया था। सोच ही रहा था, कि फौवारे पर जाकर बस पकड़े, कि इतने में उसने देखा, फि बह स्त्री दीद समय उसकी पोशाक रोज की पोशाक से विल्कूल भिन्‍ते मी। वह सिर से पैर तक खद्दर पहने हुए थी। नहीं, इसमें कोई शक नही था। केवल रोड का वह चश्मा-भर था | अनजान मे ही रमेन्द्र ठिईककर खड़ा हो गया। शायद वह स्त्री भी जरा-मी गे । उसके चेहरे पर बैठ अरुषिमा भी आयी केर अणे बद्‌ सम 1पर अगले हो क्षण बह गेंगव- त, मानो फो बात हीनहो। नदर जव पकः सेषला, रप्र हो चुकी थी रेन उसके भन में दौड़ गये । ये; আইল दिया। और वद्‌ गयी थी। सद को मोद मोद कितौ को दू 1 ५ । चावल से फ्ोकारे तक इधर से उघर चक्कर लगाता हां, १ ॥॥ ॥ শা मितो 1 समौ सा হাজী वह राष्ट्रीय विचार पी है । हर ५4 | क्यों पहनती ? पर रोड तो खदर नहीं पहनती ॥ एइरवाग १1१ १ রা मर হয? नहीं, स्वराज्य के पहले ऐसा हो सकता भा, पर ले १ दर पट्नने पर श्रतिदन्ध न्ध लये? तम च रोख सद मी ५ तेव तक बहु स्वरीर्चादनी चौक की धपार्‌ ४49 वहां पर स्तंभित खा रद । एक साथ रवर (111 द्‌ मदे वदं कुठ देर ओर खड़ा रवा, ५२ 49 # अपनी अनजाल में उस तरफ जाने लगा, गिध* का १५}




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