लव कुश | Love Kush

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पिता क॑ पास दौड़ जाऊँगी, उनके पावन पथ पर॑ चला जाऊंगा । महामन्त्री की आंखों में श्रासू टपक रहे ये। वृद्ध चेहरे पर विपाद गहरा था | भरत पर एक राजा के रूप मे नही, परन्तु महा- राजा दशरथ के गुणवान्‌ और लाइले पुत्र के रूप में महामन्‍्त्री को श्रपार स्नेह थो । भरत की विरक्त दशा से वै परिचितंये। भरत शजं सिंहासन परे चिगाजितं योगी थे, महल में निवास करने वाले स्पागी ये यह्‌ वात महामन्त्री मली प्रकार जानते ये “परन्तु राम के वनगमनं के पश्चात्‌ भरत ने कभी भी संसार त्याग की नहीं कही थी | ग्राज अचानक भरत ने यह बात कह दी। महामन्त्री के दिल को धक्का लगा (ठेप लगी) । “भरे प्रिय राजन्‌, मेरी एक विनती स्वीकारोगे ? कृपा करणे श्रभी यह बात॑ श्री दाम को आप न कहना ““” आप जानते हैं श्रीराम फे हृदय को “और किसी को मी यह बात न कहना ~ “प्रजा का झानन्द-उत्सव टूट पड़ेगा (भंग हो जायगा) श्रीर हा हा कार मन्न जायया! भरत मौन रहे । इन्हें तत्काल कहां किसी को वात करनी थी ? परन्तु जहां हृदय मिले हुए होते है, वहां हृदय छूपा हुआ नहीं रह सकता | महामन्त्री के प्रति भरत को श्रद्धा श्र विश्वास ही नहीं बल्कि पिनवन प्र मं था। इनके सामने भरत अपने मनोभाव गप्ते महीं रप सके “ग्रच्छा प्रापकी व्रात स्वीकार है; परन्तु यहु वात निष्िचित है कि जब भी मै गआार्यपुत्र को यह वात कहूँगा, तब उन्हें दुःख तो ट्रीने का ही है (होगा ही) “राग है न ! राग ही दुःखी होता है जीव को राग के बन्धन ही गद्ात्मा को संसार में भटकाते हैं “४८ मुझे अब संसार में किसी पदार्थ के प्रति, किसी श्यक्ति के प्रति कोई राम नहीं हैं. क्यों श्रब मुझे संसार में रहना ?.आरयेपुत्र की आज्ञा के




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