पराजित | Parajit
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). नहीं समभता था। श्रब उसने स्वयं कई कारीगर रख छोड़ थे । वारे,
. जोड़ी चप्पलों के तले सिलने में वह बलवन्ती को भी डेढ़ रुपया देने लगा
था। इस तरह रुपये-बारह आने का काम बलवन्ती दिन-रात जुटकर कर
कर लेती थी । तब कही माँ-बेटी की उदर-पूर्ति हो. पाती थी । |
हरदेई भ्रभी बरोसिया के ही पास बेठी थी कि वलवन्ती आँचल में
चप्पलें भरे उसके पास श्राकर बंठ गई और प्रसन्नता के श्रतीव आवेग
से आलोड़ित होकर जल्दी-जल्दी कहने लगी--भरे माँ !, देखो तो झ्राज `
-नेवागी ने मुझे दो दर्जव चप्पलें दी हैं । पूरे तीन रुपये की मजदूरी है ।
सचमुच नेव(जी बहुत अ्रच्छा है माँ। मुभसे बेचारा जब भी होता है यही
कहा करता है बलवन्ती संकोच न करना किसी चीज़ की जरूरत हो तो
बतलाता । में कोई गैर नहीं है. । हे... कि 0
. हरदेद मन ही मन किसी गहरे विचारमें दूब गई और कुछ क्षण
वाद.वोली--ष्ा वेटी, कई किसी को कुछ दे नहीं देता है, मगर दुनिया-
दारी का यही दस्तूर है । नेवाजी हम लोगों का स्याल रखता है, यही
.. बहुत है ।
इस पर बलवन्ती अल्हड़ता वश धीरे से कह गई---हाँ, माँ, यह
विल्कुल सही हैं । श्राज ही बेचारा, पूछ रहा था कि बलवन्ती तुमने সাজ
बहुत देर कर दी। कारीगरों को काम बहुत पहले बाँट चुका था।
लेकिन तुहारे लिये चप्पलें, श्रलग रख दी हैं ।
हरदेई यह सुन कर कुछ चौंकी, किन्तु वह कुछ बोल नहीं पाई ।
-बलवन्ती अपनी बात फिर कहने लगी--'सच कहती हूँ माँ अगर इतना
জাম रोज मिलता रहे तो हम लोगों को किसी किस्म की तकलीफ नहीं
, हौ सकती ।' |
| हरदेई फिर भी चुप रही । वह सोच रही थी कि नादान-बलवन्ती
यह नहीं जानती कि दुनिया बिना मतलब किसी के काम नहीं ्राती हे।
. भ्रपने तो काम आते ही नहीं फिर परायों का क्या भरोसा । वह नेवाजी
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