जातक खण्ड-1 | Jatak Khand-1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
604
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1 १२३ 1
भ्रात्मा नाम का कोई नित्य ध्रुव, अ्रविपरिणाम स्वभाव वाला पदाथ
नही ह । कमं से तथा (म्रविया प्रादि) क्लेशो से भ्रभिसंस्कृत पञ्चस्कन्ध'
मात्र ही पूवे-भव संतति क्रम से एक प्रदीप से दूसरे प्रदीप के जलने की तरह
गभे में प्रवेश पाता है)
, इसी प्रकार राजा मिलिन्दः ने महास्थविर नागसेन से प्रन किया--
यदि संक्रमण नटी होता तौ पुनजन्म कंसे होता है ?
हाँ महाराज, बिता संक्रमण हुए पुनर्जन्म होता है।
१. भन््ते, सो कैसे होता है ? कृपया उपमा देकर समभावे।
महाराज ! यदि कोई एक बत्ती से दूसरी बत्ती जला ले तो क्या यहाँ
एक बत्ती दूसरी में संक्रमण करती हैं ?
नहीं भन्ते !
महाराज ! इसी तरह बिना संक्रमण हुए पुनर्जन्म होता है ॥
२. कृपया फिर भी उपमा दे कर समभावें ?
महाराज ! क्या आपको कोई श्लोक याद है जो आपने अपने गुरु के
मुख से सीखा था?
हाँ, याद है ।
महाराज ! क्या वह् शलोक आचाय्ये के मुख से निकल कर आपके
मुख में घुस गया ?
नहीं भन्ते !
महाराज ! इसी तरह बिना संक्रमण हुए पुनजेन्म होता हं 1
মন্ব ! आपने अच्छा समभाया ।
फिर राजा बोला--भन््ते ! ऐसा कोई जीव है जो इस शरीर से निकल
कर दूसरे में प्रवेश करता हुं?
नहीं, महाराज !
* रूप, बेवना, संज्ञा, संस्कार, तथा विज्ञान ।
` राजा भिलिन्द का समय ई० पू० १५४० है।
श्रात्मा का एक शरीर को छोड कर इसरे को धारण करना ।
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