जातक खण्ड-1 | Jatak Khand-1

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Jatak Khand-1 by भदन्त आनन्द कौसल्यायन - Bhadant Aanand Kausalyaayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 १२३ 1 भ्रात्मा नाम का कोई नित्य ध्रुव, अ्रविपरिणाम स्वभाव वाला पदाथ नही ह । कमं से तथा (म्रविया प्रादि) क्लेशो से भ्रभिसंस्कृत पञ्चस्कन्ध' मात्र ही पूवे-भव संतति क्रम से एक प्रदीप से दूसरे प्रदीप के जलने की तरह गभे में प्रवेश पाता है) , इसी प्रकार राजा मिलिन्दः ने महास्थविर नागसेन से प्रन किया-- यदि संक्रमण नटी होता तौ पुनजन्म कंसे होता है ? हाँ महाराज, बिता संक्रमण हुए पुनर्जन्म होता है। १. भन्‍्ते, सो कैसे होता है ? कृपया उपमा देकर समभावे। महाराज ! यदि कोई एक बत्ती से दूसरी बत्ती जला ले तो क्‍या यहाँ एक बत्ती दूसरी में संक्रमण करती हैं ? नहीं भन्ते ! महाराज ! इसी तरह बिना संक्रमण हुए पुनर्जन्म होता है ॥ २. कृपया फिर भी उपमा दे कर समभावें ? महाराज ! क्‍या आपको कोई श्लोक याद है जो आपने अपने गुरु के मुख से सीखा था? हाँ, याद है । महाराज ! क्या वह्‌ शलोक आचाय्ये के मुख से निकल कर आपके मुख में घुस गया ? नहीं भन्ते ! महाराज ! इसी तरह बिना संक्रमण हुए पुनजेन्म होता हं 1 মন্ব ! आपने अच्छा समभाया । फिर राजा बोला--भन्‍्ते ! ऐसा कोई जीव है जो इस शरीर से निकल कर दूसरे में प्रवेश करता हुं? नहीं, महाराज ! * रूप, बेवना, संज्ञा, संस्कार, तथा विज्ञान । ` राजा भिलिन्द का समय ई० पू० १५४० है। श्रात्मा का एक शरीर को छोड कर इसरे को धारण करना ।




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