अभिनव रस-मीमांसा | Abhnav Ras Meemansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्तावना के प्रसग में रस का एक मितात नवीन “झभिनव रस-मीमासा' রব श्रौर मौलिकता की दृष्टि से ही 'रस-मीमासा' और मौलिक विवेचन है । नवीनतयक्ृत किया गया है। इसकी नवीनता श्रौर कौ “प्रभिनव” के विशेषण से भ्रसामायत प्रत्येक लेखक श्रपनी उम कृति को मौलिकता कछ भनाधारण है । 1 वहं किसी परिचित विपय को नवीन भी सवीन झौर मौलिक मानता है,तुत करता है। ऐसी कृति म सिद्धान्तो की “रूप में भ्रथवा नए दृष्टिकोण से भ परिचित सिद्धान्तों के आधार पर कुछ नए नकोई मौलिकता न होते हुए भीड़ नई व्याय्या और कुछ नए निष्क्य को ही डृष्टिकोण, कुछ नए विवेचन, कुत्ता जाता है। हिंदी आलोचना की भ्रधिकाश कुति की मौलिकता का प्रमाण | यह मौलिक्ता का झाशिक रूप है । “रचनाएं इसी भर्थ मे मौलिक हैं 1 रकार की मौलिकता सम्भव होती है। पणत सामान्यत साहित्य मे इसी पले उदभावना युगोमेहातीहैग्रीरयुगोका न्नवीन और क्रातिकारी सिद्धान्तो «य-शास्त्र के साघारणीकरण, अ्रभिव्यक्तिवाद प्रवतन करती है। भारतीय काक़ सिद्धान्त हैं। भारतीय काव्य शास्त्र मे आदि ऐसे ही युगान्तरकारी मौलिं वाद कोई मौलिक श्रौरं क्रान्तिकारी स्यापना अभिनव गुप्त के श्र्भिस्यक्तिवाद के गैन काव्य शास्त्र तथा हिदी कौ भ्र्वाचीन नही हई । सस्कूत का उत्तरकालव्या तथा इनका ही समयन है। आधुनिक “प्रालोचना इन्हीं सिद्धान्तों की व्या(काव्य शास्त्र की चिरतन स्थापनाश्रो श्रथवा हिन्दी भालोचना प्रात्रीन भारतीय धतों का अनुसरण करती है। आधुनिक 'पविचमी आलोचना के नवीन सिद्धि १ का अधिकार प्राचीन भारतीय श्रचारयों “भारतीय मनीषा के मत मे सिद्धान्त पराघीनता के युय में (तथा स्वतातता अथवा पर्चिमी विद्ानो को 4 है। प्रतिभा साहित्य, दशन झादि किसी भी /के पिछले वर्षों मे भी) में असमथ रही है। पिछली शताब्दियों में स्षेत्र में नवीन सिद्धान्तों के उद्भावन दा व्याख्यान ही होता रहा है। प्राचीन आचीन वित्र का पिष्टपेषण भ्रथपत पश्चिमी विद्वानों द्वारा प्रशस्त किए गए जसिद्धान्तों की यह व्याख्या भी भ 4




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