राजेन्द्र प्रसाद आत्मकथा | Rajendra Prasad Atmakatha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-पेरे पूवज संयुक्त प्रान्त में कोई जगह अमोढ़ा नाम की है। सुनते हैं कि वहाँ कायस्थों की अच्छी बस्ती हैं। बहुत दिन बीते, वहाँ से एक. परिवार निकलकर पुरब चला और बलिया में जाकर बसा । एक बड़े ज़माने तक बलिया में रहने के बाद उस परिवार की एक शाखा उत्तर की ओर गई और आजकल के जिला सारन (बिहार) के एक गाँव जीरादेई में जाकर रहने लगी । दूसरी शाखा गथा में जाकर बस गयी । जीरादेई-शाखा के कुछ लोग वहाँ से थोड़ी ही दूर पर एक दूसरे गाँव में भी जाकर बस गये। जीरादेईवाला परिवार ही मेरे पुर्वंजों का परिवार हैं। शायद जीरादेई में आनेवाले मेरे मुक्से सातवीं था. आठवीं पीढ़ी में ऊपर थे। जो. लोग जीरादेई में आये थे, गरीब थे. और रोजगार की खोज में ही इधर आ गये थे। चूँकि उस गाँव में कोई शिक्षित नहीं था और उन दिनों भी काथस्थ तो शिक्षित हुआ ही करते थे, इसलिए गाँव के लोगों ने उनको वहाँ रख लिया। प्रायः उसी समय से उन लोगों का सम्बन्ध हथुआ-राज से भी हो गया, जहाँ. कोई छोटी-सी नौकरी लिखने-पढ़ने की उनमें से किसी को मिल गयी । हथआ उन दिनों इतना बड़ा राज नहीं था और न उसकी इतनी आमदनी ही थी । उसके रईस का मुख्य स्थान भी हथुआ में पीछे बना; उन दिनों कहीं अन्यत्र ही था । न कु हथुआ-राज के साथ मेरे पुर्वेजों का सम्बन्ध कई पीढ़ियों तक चलता रहा । मालूम नहीं कि. वे लोग किस. पद पर थे; पर जहाँ तक खबर हू, बह कोई ऊँचा पद नहीं था । गाँव के घर भी फूस के छप्पर के ही. थे। जीरादेई में वे लोग एक दूसरे कायस्थ जमीन्दार के, जिनकी बड़ी जमीन्दारी थी, रयत थे और हम लोग आज- तक कभी भी अपने गाँव की. जमीन्दारी में हिस्सेदार नहीं हुए, यद्यपि पीछे हमारे पूर्वंज और कई गाँवों के जमीन्दार हो गये । के : कया कप नरक मेरे दादा दो भाई थे। उनका नाम था मिश्री लाल । उनके बड़े भाई थे ... चौधुर लाल। मिश्री छाल का देहान्त बहुत छोटी उम्र में ही हो गया। उनके केवल :. एक लड़के थें महादेव सहाय जो मेरे पिता थे । चौंधुर लाल जी के भी एक पुत्र थे. _ जगदेव सहाय! मिश्री लाल की आकस्मिक मृत्यु कम उम्र में होने के कारण मेरे अग्नि |




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