ऋग्वेदके बनानेवाले ऋषि | Rigvedke Bananevale Rishi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ७५७ )
ঘা: লল্তত্যান্ বিলাল अदब्धः विमुमोक्त
पाशान् ।
अथ- शुनःशपने जो पकड़ा हुआ था ओर तीन खम्भोंसे बांधा
हुवा था इस प्रकार आदित्य देवताका आह्या नन किया कि बुद्धिमान
प्रकाशमान दीप्रिमान वरुण उसके वंधन खोल दवे ।
कुमार ऋषिन ऋग्वदक मंडल ५ के मृक्त २ की ऋचा
७ में शुनः शेपका नाम इस प्रकार वणन किया हैं ।
शुनः शोपम् चित् निदितम् सहखात्
यूपात् अमुञ्नः अशमिष्ट हिसः ।
अथ-तृन शुनः शप को उसकी प्राथनापर छुड़ाया जो हजार
वंधनोस ववा हवा धा |
हिरण्यस्तूप १ ( ३१-३५ )
ऋग्वेद भाष्यम दयानन्दन प्रथम मंहलके मक्त ३? से
३५ तक्र का ऋषि “आङ्गिरसो हिरण्यस्तूपः अर्थात् अङ्गिरा
के बट 1हरण्यसस्तृपका छखा সঙ प्रथम मइलक শুক
३१ की ऋचा १ में अथोत् अपनी बनाई सबसे पहली
ऋचाम अद्विराकी स्तुति करता हैं ।
त्वमप्त अथमा आजुरा ऋष |
अथ-हं आग्नि तृ् पहल अंगिरा ऋषिथी |
কুন. ( २६--७४३ )
ऋग्वेद भाष्यमें दयानन्दने प्रथम मंठलके मृक्त ३६ से
४३ तक का ऋषि “घारः काण्वः” या “घोरपुत्रः कण्वः
लिखा हैं यह ऋषि अपने बनाये सृक्ता्म इस प्रकार अपना
नाम लेता ₹।
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