ऋग्वेदके बनानेवाले ऋषि | Rigvedke Bananevale Rishi

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Rigvedke Bananevale Rishi by बाबू सूरजभानुजी वकील - Babu Surajbhanu jee Vakil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७५७ ) ঘা: লল্তত্যান্‌ বিলাল अदब्धः विमुमोक्त पाशान्‌ । अथ- शुनःशपने जो पकड़ा हुआ था ओर तीन खम्भोंसे बांधा हुवा था इस प्रकार आदित्य देवताका आह्या नन किया कि बुद्धिमान प्रकाशमान दीप्रिमान वरुण उसके वंधन खोल दवे । कुमार ऋषिन ऋग्वदक मंडल ५ के मृक्त २ की ऋचा ७ में शुनः शेपका नाम इस प्रकार वणन किया हैं । शुनः शोपम्‌ चित्‌ निदितम्‌ सहखात्‌ यूपात्‌ अमुञ्नः अशमिष्ट हिसः । अथ-तृन शुनः शप को उसकी प्राथनापर छुड़ाया जो हजार वंधनोस ववा हवा धा | हिरण्यस्तूप १ ( ३१-३५ ) ऋग्वेद भाष्यम दयानन्दन प्रथम मंहलके मक्त ३? से ३५ तक्र का ऋषि “आङ्गिरसो हिरण्यस्तूपः अर्थात्‌ अङ्गिरा के बट 1हरण्यसस्तृपका छखा সঙ प्रथम मइलक শুক ३१ की ऋचा १ में अथोत्‌ अपनी बनाई सबसे पहली ऋचाम अद्विराकी स्तुति करता हैं । त्वमप्त अथमा आजुरा ऋष | अथ-हं आग्नि तृ्‌ पहल अंगिरा ऋषिथी | কুন. ( २६--७४३ ) ऋग्वेद भाष्यमें दयानन्दने प्रथम मंठलके मृक्त ३६ से ४३ तक का ऋषि “घारः काण्वः” या “घोरपुत्रः कण्वः लिखा हैं यह ऋषि अपने बनाये सृक्ता्म इस प्रकार अपना नाम लेता ₹।




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