जैन तर्क भाषा | Jain Tark Bhasha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
107
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)~ जैन तकं भाषा
/ प्रत्यक्ष लक्षयित्वा साव्यवहारिक-पारमाथिकत्वाभ्यां तद्विभजनम् । )
तद द्िमेदम-प्रत्यक्चम्, परोक्षं च । अक्षम्-इन्द्रियं प्रतिगतम्-कायेत्वेनाधितं
प्रत्यक्षम, अथवा5बनते ज्ञानात्मना सर्वार्थान् व्याप्नोतीत्यौणादिकनिपातनात् अक्षो
जोवः, तं प्रतिगतं प्रत्यक्षम् । न चेवमवध्यादौ मत्यादो च प्रत्यक्षव्यपदेश्नो न स्यादिति
वाच्यम्; यतो व्युत्पत्तिनिमित्तमेवेतत् , प्रवत्तिनिमित्तं तु एकाथसमवायिनाऽनेनो-
लक्षितं स्पष्टतावस्वमिति । स्पष्टता चानुमानादिभ्योऽतिरेकेण विश्षेषप्रकाशनमित्य-
दोष: । अक्षेभ्योऽक्षाद्रा परतो वतत इति परोक्षम्, अस्पष्टं ज्ञानमित्यथः ।
२. प्रत्यक्षं द्विविधम्-साव्यवहारिकम्, पारमर्णथकं चेति । समीचीनो बाधा-
रहितो व्यवहारः प्रव॒त्तिनिवृत्तिलोकाभिलापलक्षणः संव्यवहारः, सत्प्योजनक साव्य-
वहारिकम्-अपारमाथिकमित्यथः, यथा अस्मदादिप्रत्यक्षम् । तद्धीन्धरियानिद्द्रियव्यव-
हितात्मव्यापारसम्पाद्यत्वात्परमाथेतः परोक्षमेव, धूमात् अग्निज्ञानवद् व्ययघानावि-
रषात् फश्च, असिद्धानैकान्तिकविरु द्धान्मानाभासवत् संशयविपययानध्यवसायसम्भ-
वात्, सदनुमानवत् संकेतस्मरणादिपुवंकनिह्वयसम्भवाच्च परमाथतः परोक्षमेवेतत् ।
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प्रत्यक्ष प्रमाणका लक्षण
१ प्रमाणके दो भेद हैं-(१) प्रत्यक्ष और (२) परोक्ष । अक्षके दो अथं हैं-इन्द्रिय और
आत्मा। अतएव जो ज्ञान अक्षपर आश्रित हो, इन्द्रियके द्वारा या आत्माके द्वारा हो, वह
प्रत्यक्ष कहलाता है । ह
शंका-यदि इन्द्रियाश्चित ज्ञानको प्रत्यक्ष माना जाय तो अवधिज्ञान आदि प्रत्यक्ष नहीं
कहला सकेंगे, क्योंकि वे इद्दरियाधित नहीं है । ओर यदि आत्माधित ज्ञानको प्रत्यक्ष माना
जाय तो मतिज्ञान प्रत्यक्ष नहीं ठहरेगा; क्योंकि वह आत्माश्चित नहीं, इन्द्रियाश्रित है ।
समाधान-जो ज्ञान अक्षपर आश्रित हो वह प्रत्यक्ष है, यह कथन জি व्युत्पत्तिनिमित्तक
दै । प्रत्यक्षका प्रवृत्तिनिमित्त स्पष्टता है । अर्थात् जिस ज्ञानम स्पष्टता हो वही वास्तवमे
प्रत्यक्ष है । अनुमान आदिमं प्रकाशित होनेवाले विशेषोंकी अपेक्षा अधिक विदोषोका प्रकादानः
होना स्पष्टता कहलाता है ।
अक्षोसे या अक्षसे पर जो ज्ञान है वह परोक्ष है. अर्थात् जो ज्ञान अस्पष्ट हो उसे
परोक्ष कहते है । |
प्रत्यक्षके भेव
२ प्रत्यक्ष दो प्रकारका है-(१) सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष ओर (२) पारमाथिक प्रत्यक्ष ।
बाधा-रहित प्रवृत्ति-निवृत्ति ओर लोगोका बोलचालरूप व्यवहार संव्यवहार कहृखाता है । इस
संव्यवहारके लिए जो प्रत्यक्ष माना जाय वह सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष है। यह अपारमा्थिक प्रत्यक्ष ই ।।
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