पृथ्वी और आकाश | Prithvi Aur Akash

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Prithvi Aur Akash by शमशेर बहादुर सिंह - Shamsher Bhahdur Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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স্১ न कत =| ১ “নহ में तो वस त॒म्हें चाकलेट देने के लिए एक मिनट को टुम्ार पास दोढ़ा चन्चा आप ; अब सुर जाना ह। ढंरों काम मेरे सर पर টং হাঁ लुः ५. नाग हज ~ शर्य ४५१ পি ০৬. ५ ह तक कामक अपने का रागाये रइज। अब मुझे देरी नहीं उस स्त्री ने रूखा-रा सह दना लिया। अकेले, अकेले, सारे दिन अकेते...आभशिर कव यह लड़ाई ख़त्म होगी £ ख़त्म हो जायगी |? “म्हार लिए तो बातें ही बनाना आसान है . ? उसने लिपय हुआ रंगीन कागज खोला ओर चाकलेट के अंदर अपने या नोकीले दाँत गड्ा दिये ; पूर लवे ठुकढ़े से तोड़कर नहीं लिया, उसी में दाँत से काटकर खाने लगी | ग्रामोफ़ोन पर रेकाडइ चढ़ा दो। खाना तुम्हारा यहीं तुम्हार पास आ जाएगा। अच्छा, गुब्बाई |? उसने लायरबाही से उसको चूमा ओर बाहर चला गया। संतरी अभी तक मकान के आगे ज़ोर-ज़ेर से कृदमन प्रठकता हुआ गश्त लगा रहा था जिससे परों में गर्माहट आ जाय । श्रफसरको देखते दी एकदम फौजी क्रायदे से साधा तनकर खड़ा हो गया | कप्तान उसके बराबर से निकला ओर चौराहे की तरफ़ मुड़ गया । जिस बड़ी-सी इमारत में पहले ग्राम-पंचायत, की बेठके होती थीं, वह अब सिपाहियों, ओर' गेर-कमीशन अफ़सरों से भरी हुईं थीं | सबके सब सीधे तनकर खड़े दो गये ओर सबों ने सलामी दी | उसने बराय- नाम उनकी सलामी का जवाब दिया। कमरा नीले धरणे के बादलों पे धुंधला हो रहा था | धक्का देकर अफ़सर ने उस कमर का दरवाज़ा खोला जो अब उसका आफ़िस था | धअ्रंदर लाओ उस औरत को |! बह मेज़ के पास जाकर बेठ गया और एक जः पूस्या पर उसे ईष्या दो रदी थी जो विस्तरे इस वक्त तक भी चेन से पड़ी रह सकती थी ডি পপ




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