पृथ्वी और आकाश | Prithvi Aur Akash
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)স্১ न कत =| ১
“নহ में तो वस त॒म्हें चाकलेट देने के लिए एक मिनट को
टुम्ार पास दोढ़ा चन्चा आप ; अब सुर जाना ह। ढंरों काम मेरे सर पर
টং হাঁ लुः ५. नाग हज ~ शर्य ४५१ পি ০৬. ५
ह तक कामक अपने का रागाये रइज। अब मुझे देरी नहीं
उस स्त्री ने रूखा-रा सह दना लिया।
अकेले, अकेले, सारे दिन अकेते...आभशिर कव यह लड़ाई ख़त्म
होगी £
ख़त्म हो जायगी |?
“म्हार लिए तो बातें ही बनाना आसान है . ?
उसने लिपय हुआ रंगीन कागज खोला ओर चाकलेट के अंदर अपने
या
नोकीले दाँत गड्ा दिये ; पूर लवे ठुकढ़े से तोड़कर नहीं लिया, उसी में दाँत
से काटकर खाने लगी |
ग्रामोफ़ोन पर रेकाडइ चढ़ा दो। खाना तुम्हारा यहीं तुम्हार पास आ
जाएगा। अच्छा, गुब्बाई |?
उसने लायरबाही से उसको चूमा ओर बाहर चला गया। संतरी अभी
तक मकान के आगे ज़ोर-ज़ेर से कृदमन प्रठकता हुआ गश्त लगा रहा था
जिससे परों में गर्माहट आ जाय । श्रफसरको देखते दी एकदम फौजी क्रायदे
से साधा तनकर खड़ा हो गया | कप्तान उसके बराबर से निकला ओर चौराहे
की तरफ़ मुड़ गया । जिस बड़ी-सी इमारत में पहले ग्राम-पंचायत, की बेठके
होती थीं, वह अब सिपाहियों, ओर' गेर-कमीशन अफ़सरों से भरी हुईं थीं |
सबके सब सीधे तनकर खड़े दो गये ओर सबों ने सलामी दी | उसने बराय-
नाम उनकी सलामी का जवाब दिया। कमरा नीले धरणे के बादलों पे धुंधला
हो रहा था |
धक्का देकर अफ़सर ने उस कमर का दरवाज़ा खोला जो अब उसका
आफ़िस था |
धअ्रंदर लाओ उस औरत को |!
बह मेज़ के पास जाकर बेठ गया और एक जः पूस्या पर उसे
ईष्या दो रदी थी जो विस्तरे इस वक्त तक भी चेन से पड़ी रह सकती थी
ডি পপ
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