स्वतन्त्रता - पूर्व हिन्दी के संघर्ष का इतिहास | Swatantrata -purv Hindi Ke Sangharsh Ka Itihas

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Book Image : स्वतन्त्रता - पूर्व हिन्दी के संघर्ष का इतिहास  - Swatantrata -purv Hindi Ke Sangharsh Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कषः स्व॒तन्त्रता-पुर्व हिन्दी के संघर्ष का इतिहास पूर्वी मांग के क्षेत्रों में मातृभाषा के रूप में बोली जाती थी। उस समय खड़ी बोली की इन दो शैलियों में शायद पारस्परिक एर्प्या वहीं थी; कम से कम उस सीमा तक नहीं थी जितनी ईसा की उन्नीसवीं शती के उत्तराद्ध तथा बीसबीं शर्ती के पूर्वाद्ध में प्रद्शितहुई। इसका कारण यह था कि अन्य देशों की भांति उत्तरी मारत के हिन्दी- भाषी क्षेत्र में बाहरी मुसलमानों का राज्य था जिन्होंने फ़ारसी को राजमाषा बनाया। धीरे धीरे उर्दू को भी प्रोत्साहन मिलने रूगा। उर्दू के शायरों (कवियों ) का, जो लगभग पूर्णतया मुसलमान थे, शाही दरबारों से साहित्यिक सम्बन्ध था, और . उनसे उन्हें आर्थिक सहायता मिलती थी। कुछ मुसलमान विद्वानों ने हिन्दी को भी अपनी काव्य-कृतियों का माध्यम बनाया, परन्तु सामान्यतः हिन्दी सरकारी सहायता से वंचित रही । पेशवा राज में हिन्दी का प्रचार अवश्य जारी रहा। जब औरंगजेब की मृत्यु के बाद घीरे घीरे मुगलों का भारतीयकरण हो गया तब उर्दू का प्रचार बढ़ने लगा ; तब फारसी के बजाय यही भाषा कहीं कहीं राज-माषा के रूप में अपनायी जाने रूगी। स्वभावत: राज भाषा अन्य भाषाओं की अपेक्षा अधिक वेग से फलती-फलती है। हिन्दी का विकास पूर्णतया हिन्दी-मायी विद्वानों के चाव पर निर्मर था, परन्तु रिवाज के अनुसार यह चाव पद्य-रचना में व्यक्त किया जाता था। उन्नीसवीं रती के प्रवे करने पर एक अद्भूत दु ८्य दिखलाई देता है; एक ओर हिन्दी-पद्य का त्र कोष है, और दूसरी ओर हिन्दी गद्य की निर्धन झोपड़ी । इस शती के पूर्वाद्ध में अंग्रेजी सत्ता सुब्यवस्थित हो रही थी, और भारत के विभिन्न प्रदेश उसके अधीन होते जा रहे थे। प्लासी' (सन्‌ १७५७) के छल, कपट तथा विश्वासघात के बाद अंग्रेजों करा सर्वप्रथम राजनीतिक आधिपत्य बंगाल पर हुभा जिसमें उस समय बिहार और उड़ीसा भी सम्मिलित थे। नवाबी काल में इन राज्यों की राजभाषा फारसी थी, और द्वितीय या देशी भाषाके रूपमे हिन्दी (नागरी) का प्रचार था । यही स्थिति उत्तर प्रदेश में थी, जिसका एक भाग प्लासी के कुष वर्षों बाद अंग्रेज़ी आधिपत्य में आ गया। अंग्रेजों ने मुसलमान शासकों की माषा सम्बन्धी नीति को अपनाया। अदालती भाषा फारसी रही , परन्तु द्वितीय भाषा के रूप में हिन्दी का प्रयोग जारी रहा। राजकीय आदेश, सूचनाएँ तथा अन्य सार्वजनिक पत्र फारसी में लिखें जाते थे, और नीचे उसका हिन्दी अनुवाद दे दिया जाता था। आज के मापदंड से उस भाषा को शुद्ध हिन्दी तो नहीं कहा जा सकता, परन्तु वह नागरी अक्षरों में लिखी जाती थी, और क्योंकि उस समय सरकारी काम चलता होता था, इसलिए उस भाषा को हिन्दी मानता पड़ेगा। उदाह्रणार्थ




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