गीति - काव्य | Geet Kabya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
391
श्रेणी :
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No Information available about रामखेलावन पाण्डेय - Ramkhelavan -Pandeya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० गीति-काव्य
श्रीजयदेवभणितमिद्मुदयति हरिचरणस्मृतिसारम् ।
सरसवसन्तसमयवनवशणेनमनुगतमदनविकारम् ।। विह `
(सरस वसन्त समय वन् वणनम् दारा इसकी वर्णन-प्रियता प्रकट
हे; वसन्त राग, रूपक ताक ओर मध्य ख्य है एवं ख्य नामक छन्द भी |
इस गीतमे विधरम्भाख्य श्रङ्गारका वणन है । सङ्खीतके शास्रीय आग्रह
ओर अपेक्षाकृत आत्म-निष्रताके अभाव मे इसे गीत-काग्यके अन्तर्गत न
मानकर गीत मानना ही उपयुक्त होगा । गंगा-लहरी? आददिके शसम्बन्धम
भी यह कथन अनुपयुक्त नहीं ; यद्यपि पंडितराज जगन्नाथमे गीति
काव्यत्वका उन्मेष अधिक है । इस प्रकार संस्कृत-साहित्यमे शुद्ध गीति-
कान्यका अमाव-सा है ओर रोक-गीतोका प्रभाव उसपर परोक्ष रूपमें
पड़ा है | प्रारम्भिक कथाओंके आधारपर आख्यान काव्य बने किन्तु वेयक्तिक
भावनाके प्रसारके अधिक अनुकूल न होनेके कारण छोक-गीतोंकी परम्परा-
में साहित्यिकताका आग्रह छाकर नये रूप-विधानकी सृष्टि हुई ओर उसका
विकास वैयक्तिक हास-अश्र तत्वसे युक्त आख्यान काव्य ओर स्वर्त॑त्र गीतो-
के रूपमे हुआ ओर इन गीतोकी परम्परामे क्रमशः गीति-काव्यका विकास
हुआ |
क्रमिक विकास
थ्राथमिक अवस्थामें गीत गेय थे | गीतोमे भाव-प्रसारके लिए काव्यत्व
का अधिक आग्रह न था। मिलन-विरह, हर्ष-गोक, आनन्द-विधादका
चित्र भावकुताद्वार नहीं बल्कि सज्ञीत ओर गेयताद्वारा उपस्थित
किया जाता था [ आनन्दकी रागात्मक अभिव्यक्ति विषादकी अमिव्यक्तिसे
विभिन्न है. ओर इस ग्रकारके गीतोंमे केवछ इनकी अमिव्यक्ति-
का आग्रह था | इस अवस्थामें शब्दका कोई महत्व नहीं था एवं विषय-
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