प्रेम पूर्णिमा | Prem Purnima
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.24 MB
कुल पष्ठ :
219
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्र म-पूर्णिमा श्२् देखा | कलेजा धड़क उठा । लपककर एक अन्वेरी गलीमे घुस गये | बड़ी देखखक वद्दों खडे रहे । जब वह सिपाही ऑसखोंसे ओशझल हो गया तब फिर सडकपर भये । वह सिपाही आज सुबहतक इनका गुलाम था उसे इन्होंने कितनी बार गाछियाँ दी थी छाते भी मारी थी । पर अभी उसे देखकर उनके प्राण सूख गये | उन्होंने फिर तकंकी छरण ली । मै मानो भंग खाकर आया हू | इस चपरासीसे इतना डरा माना कि वह सुे देख छेता पर मेरा कर क्या सकता था । इजारों आदमी रास्ता चल रहे ईं। उन्दीमे एक मैं भी हू । क्या वह अन्तयांमी है ? सबके हृदय का दाल जानता है ? मु देखकर वह अदबसे सलाम करता और वहॉका कुछ दाल भी कहता पर मैं उससे ऐसा डरा कि सूरत तक न दिखायी । इस तरह मनको समझाकर वे आगे बढ़े । सच है पापके पंजोंमें फंसा हुआ मर झड़का पत्ता है जो इवाके जरासे झोंकेसे गिर पढ़ता है । मुन्धीजी बाजार पहुँचे । अधिकतर दूकानें बन्द हो छुकी थीं । उनमें सॉड़ ओर गाये बैठी हुई जुगाली कर रही थी । केवल हृलवाइयोंको दूकानें खुली थी और कहीं-कहीं गजरेवाले दारकी हॉक लगाते फिरते थे । सब इलबाई मुन्दीजीकों पहचानते थे । अतएव सुन्शीजीने सिर झुका छिया । कुछ चाछ बदली और लूपकते हुए चले । यकायक उन्हें एक बग्घी आती दिखायी दी । यदद सेठ बल्लमदास वकीलकी बग्घी थी । इसमें बेठकर हजारों बार सेठजीकें साथ कचंहरी गये थे पर आज यह बग्घी काल- देवके समान भयकर मादम हुई । फोरन शक खाछी दुकामपर
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