श्री अरविन्द का सर्वांग दर्शन | Shri Arvind Ka Sarvang Darshan

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Shri Arvind Ka Sarvang Darshan by रामनाय शर्मा - Ramnay Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(৯) हैं। परिवार तथा परत्य सामाजिक संस्थाओं के बाहर ष्ट कर व्यक्ति में अनेक সু কয আযান बना रहता है। भाध्यात्मिक विकास में, जैसा कि ईसा ने चतलाया है, दान से संपु्धि, मृत्यु से जीवन झौर भ/त्मत्याग से झात्म साक्षात्तार मिलता है । श्रायिक क्षेत्र में भी सी अरविन्द का संदेश वही सस्तुलत ओर सर्वाय दुष्टि- कोण लिये है। जहाँ तक भोतिक वस्तुओं के वितरण का सम्बन्ध है, जहाँ तक मावद की आ्रावश्यक्रतापों और झाराम के साधनों का सम्बन्ध है, वहां तकं श्री पररविन्दं पक्के घाम्यवादौ ह । वे पूजीवादके घोर विधौ हैं, भौर मास के माय यह मानते हैँ कि काल का प्रवाह पूजोवाद को भविक दिनन टिक देगा 1 परन्तु भौतिकः स्तर से ऊपर उटकर प्राणात्मक भौर मानिक सम्बन्धों में साम्यवाद कोई सुलमाव नहीं उपस्यित करता । उसका क्षेत्र केबल भौतिक स्तर है। रोटी की समस्या मौतिक स्तर पर स्‍भत्मघिक महत्वपूर्ण होने पर भी जीवन की समस्या नही दै भरतः उसको य्रेन केन प्रकारेण मही हल किया जा सकता। वर्ग संघ पर धाघारितं साम्यवादी साघन मानव के भाध्यात्मिक विकास में साधक है । साम्पवार के भ्राध्यात्मिक रूपान्तर की आवश्यकता है । अन्तर्राष्ट्रीय राजनैतिक क्षेत्र में थी अरविन्द एक विश्वराज्य के जवर्देस्त द्वामी हैं। यह विश्वराज्य विद्व के समस्त राष्ट्रों का एक संघ होना चाहिये जिसमें सभी की राष्ट्रीय विशेषताओं का प्रपना स्थान हो । जिस प्रकार प्राददी राष्ट्र वही है, गिम्ममें व्यक्ति को स्वतन्त्रता भौर पूर्णता का समाज के विकास और संगठन से सामंजस्य हो उसी प्रकार भस्‍्तर्राप्ट्रीय समाज भ्रथवा राष्ट्र में प्रत्येक राष्ट्र की स्वतन्त्रता भ्ौर विकास का समस्त मानवता के विकास और पूराँता से सामजस्य होना चाहिये। विश्व शात्ति को समस्या को सुलभाने में श्री भरविन्द की दिव्य दृष्टि कठोर यथार्थवाद पर भ्राघारित है । सेनाग्रौ भें कटौती मथवा निःस्त्रीकरण कोई स्थायी निदान नहीं है। न हो कुछ दृढ़ भन्तर्राष्ट्रीय वियम' दी विद्वव मे स्थायो शान्ति स्थापित फर सकते हैं। एक स्वेच्छाप्रर्ण भोर सुदृढ़ विश्व-राष्ट्र ही एकभात्र निदान है। यह विश्व-राष्ट्र, जाति, देश, संस्क्ृति भौर भाधिक सुविधाओं के भाधार पर बने भिन्न-मिन्न स्वतंत्र समुदायों का सगठन होगा इसमें कुछ बड़े राष्ट्र, की ठकेदारी नही बल्कि सभी राष्ट्रों को समान अधिकार होंगे। इस विश्व-राष्ट्र की विश्व सरकार की महत्ता स्थायी रखने के लिये उसको एक सबल सैन्य दल रखना होगा । रास्ट्र-राष्ट्र में प्रेम नहीं हो सकता। जब तक मानव स्वभाव परिवर्तित नहीं होता तब॒तक जीवन का नियंत्रण शक्ति द्वाया ही किया जा सकता है। संनिक, पुलिस, प्रशासत, विधान, न्याय तथा भ्राधिक, सामाजिक भौर सांस्कृतिक सभी व्यवस्थाभो पर अन्तर्राष्ट्रीय सरकार का नियंत्रण होना चाहिये। परन्तु मावव समाज के विकास में विश्व सरकार छी स्थापना कोई झन्तिम




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