विदेशी विद्वान् | Videshi Vidwan

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Videshi Vidwan by महावीरप्रसाद द्विवेदी - Mahaveerprasad Dvivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হন म्पन्सर ११ পুমা হু डर्ची सामक शहर में २७ एप्रिल হও হী स्णन्सर का जन्‍म हुआ। उसका पिता वहाँ एक सदरसे # अध्यापक था और चचा पादरी था | ख अधिक था । स्कूल क सकरा स जा अमदन हेती थी सस कयन चरता श्रा} इससे स्वन्मर का पिना लकं क चरर जाकर फंडाया करता था | इफसे अधिक मिद्दनत पड़ती थी, जिसका फल य न्रा कि बद्च दीमार हो। गया और सदरसे से उसे इस्तेफा दे दमा ५३ : जब उसकी तबीयत कुछ धच्छी हुई तब उससे कन्माब्तत की डोशिया तेयार करने का एक कारखाना खोला | उसमें उसे लुकुसान हुआ | जिसने जन्म भर अश्रध्ययत अब स्र्यापन किया उससे इस तरह के ऋम जल আল বা জঙ্গল गे? अन्त में कारखाना वन्‍्द करना पड़ा । तब स्पेन्मर के पिता ने अपन। एक भदरसा अलग साल लिया। इसमें उसे कामयाबी हुई और धर का खर्च अच्छी तरह चजछ्तने लगा ! वर स्पेन्सर लद्कपन में बहुत कमज़ार था | सात-अाद कप की उम्र तक उसने कुछ भी लहों पढ़ा-लिखा । उसको कमज़ोरी देखकर उमका पिता भी कुछ त कहता था । उसने अपने लक पर पढने खिखने के लिए कभी दबाव नहीं डाला । লক্ষ জা হাল কী আদ में विज्ञान का चसका लग गया था | बच दुग्दुर तक धुमने निकल जाया करता था और तरह-तरह के की हं-मक्ना्ड और पौधे क्ञाकर घर पर जमा करता था। इसी का उसकी चिज्ञान-शिक्षा का प्रारम्भ समक्तिए। पिता इस




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