हिन्दुस्तानी वैमासिक | Hindustani Vaemasik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ভাঙা ই इलियद का निर्वेबक्तिकता सिद्धान्त श्ौर साधारणशीकररा १९ किया गया है, ओर यहू साधारणीकरणा सिद्धान्त के अन्तर्गत वस्वृतत्व और आात्मतत्व के प्रभेद, उनक्रे सह्‌-श्रस्तित्व कै प्रतिपादन, का स्पष्ट प्रमाण है] बात्मीक्रि के इलोक के प्रसंग में रचता-प्रक्रिय को चर्चा से यह स्पष्ट है कि कवि-मानस में भी वस्तु और भाव का उदय प्रायः एक साथ ही होता है । रख को 'ऋदिति प्रत्यय” कहा गया गया है । ग्रास्वादत-प्रक्रिया के विवेचन में यहु बताया गया है कि मुख्यार्थ से व्यंग्यार्थ का बोध प्रस॑- लक्ष्यक्रमरीति से त्रन्‍्त घटित होता है। वाच्य-वाचक रचना प्रपंच से चारु काब्य के पारायणं से सहृदय के व्यक्तिगत रागद्रेष तिरोहित होने लगते हैं, जिसके फलस्वरूप उसके हृदय में उद्बुद्ध स्थायी रस रूप में झ्रास्वाय् होता है। इलियट काव्यास्वाद में सहृदय को द्रवित करने की क्षमता स्वीकार करते है। अपने एक प्रसिद्ध निबन्ध < म्यूज़िक श्राफ पाइट्री? में उन्होंने लिखा है 1 [1 ए९ 8 170ए८व ৮ & 90609, ३६ 188 71९87६ 890116- 810078) 7065129098 50010117106 22000091009 08 11 ৮৩206 006 20550. ৮890) 1 15, 88 0007५ 77६६1717812838, संस्कृत काव्यशास्त्र भो रसास्वाद में सहुदय को द्रवित करने की सामथय मानता है, यह्‌ रसास्वादे का एकत विशेष गुण है। कुल मिलाकर यह कहा जाता है कि इलियट का काव्यविवेचन अनेक रूपों में भारतीय साधारणीकरण सिद्धान्त के श्रत्यन्त निकट है प्रौर इलियट काव्यास्वाद की समस्या को अपने ढंग से हल करने में बहुत दूर तक सफल भी हैं, तथापि साधारणीकरण सिद्धान्त जैसी सर्वाग-सस्पुर्णता, संगति एवं ऋमबद्धता उनके विवेचन में नहीं मिलती । सन्दर्भ संकेत (१) सेक्रेड बुड, पू० १४-१५ (२) सेलेक्टेड एसेज ६० २४ (३) सेलेबटेड एसेज, प्रु० १२४-२५ (४) द्रेंडोशन एंड दि इंडिक्जुअल टेलेंट (५) सेकंड बुड (६) वही (७) सैकोंड बुड (८) ला सपैण्ट को भूमिका (६) सेक्रेड चुड (१०) समोक्षालोक, भगोरथ दीक्षित, पृ ९७२ पर उद्धृत (११) स्स-सि द्वान्त और सोन्दर्यशास्त्र पु० २०६-२०७ (१२) एक शोर वास्तविक जीबन सदेव विषय सामग्री है और दूसरी शोर वास्तविक जीवन से अपसरण कलाकृति के सृजन के लिए आवश्यक शर्ते है ।” सेलेक्टेड एसेज्ञ, पृु० १११ (१३) आर्ट एक्सपीरिएंस : एम० हरियाना (१४) सेचेदटेड एसे ।प० १२४-२९ (१९) ब्रिटिश जर्मल ग्राफ एस्येटिक्स जुलाई ६५, प° ३५६०-१ (१६) दि स्पिरिर श्राफ रोमान्, पू० £ (१५) ^ पाऽ छाज 1 7 त त श 7 71.7.11 00130610960 ৬18) 8006390,+১ क्रिये शन एण्ड डिस्कवरी ; इलीसियो बॉइबस पु० २४८ {१८} रस सिद्धान्त झोर सौन्दयं शाख, निर्मला जैन, पु० ३२६ { १६} “1116 00658055109 00615 लाट, 2 065 6:0285০0. था ८ पवः ज 0105 ४७ तात 035 56092]. ওপু০515258 2: 56865 ০£ 00120 200. 1561108-+ উউনইভ হুইিজ ঘুণ २४८॥(२०) ब्रिटिश जनल भ्राफ एस्थेरिक्स, जुलाई, दर, पु० ३५४०-४१ (रे 1) 4006 906০5 আন 8 गए চি0৮ ৪, 2606650160০ 92026 दवे अणा प्प 00020060655 ি911795 [01010955259 1702953) %%13100 1800275 05616 ০0) ৪1] पौल [वल पणत तव एण ८५ णप 8. लम ০0090003219. छाद्चटात 102०71०77 --परम्परा और वेयक्तिक प्रतिभा (२२) किएशन एंड हिस्छवरो, प° १७६ (२३) दि वी कायते प्राफ़ पोटी (२४, परम्परा भोर আতিক प्रतिमा এ




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