राजस्थान के सांस्कृतिक उपाख्यान | Rajasthan ke sanskritik upakhyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रिकिता नहीं मिलती, केवल इतिबृत्त मिलता है । ऐसे गीत इतिहास कीर दृष्ठि' से तो महत्वपूर्ण समझे লা ই, কাটি की दंष्टि से उनका कोई विशेष महत्त्व नहीं सर्मफा जाता ४-भात्र आदि की ছগি'উী हिंगेल के 'सब दीहले प्रायः संमान होते हैं- किन्तु किसी किसी गीत कें प्रथंम दोहले के प्रथम/चरण में कुछ मात्राएँ था घ्ण अधिक देखे, गये 1. यष्ट. सच है कि डिंगल गांतों, में अंतिशयोक्ति की मात्रा कमं नदीं 'हती किन्तु अतिशयोक्ति को हटा कर यदि' उनसे काम लियी जाय तो টিলা के लिंए'भी श्रमूल्य, सामग्री इन गीतों में मिल सकती दै | एजस्थान: के- सुप्रसद्ध इतिहासकार श्री' ओमाजञी तक ने भीत्तों- की गेतिहासिके उपयोगिता: को स्वीकार किया है। स्वर्गीय श्री मेघा- ऐीज्ी के शब्दों में “यह सत्य 'है कि ये'गीत विशुद्ध इतिंदास का चित्रण हीं करते थे किन्तु प्रजा-जीवन की अनेक भार्मिक 'बेटनाओं तथा श़क्काल्िक परिस्थितियों पर लोक-हृदय की समीक्षा को विवरण इन দলা में मिल जाता हैं) इतिहास के शुष्क कंकाल को इस गीतों ने तीकोर्मियों के सजीव रुधिर-सांस से आपूरित कर दिया है ।? 2 ` डिगल गीतों की एक पमुख त्रिरोपता £ वेण सगाई -। यह एक पकार. का शब्दालंकार दे जिसके अनुसार सामान्यतः किसी चरण के थम'शब्द का प्रथम 'अज्ञषर उस चरण के अन्तिम शब्द्‌ कैः प्रथम प्रच्र से मिलता है। जैसे-- 55555 ५ छव ४. : » ५ “हझुडी-देह वणी नहें रहसी ` घट में सोचो धणी 'घणी। 8 सासान्यत: प्रत्येक डिंगल-गीते के प्रारेस्से में गीत के विपय तंथा रचंयिता कै नामे का उल्लेख मिलता है ॥ इंसेसे भी गींत-लेखकों के इंतिहास-बोध की ओर हमारी ध्यान भ्ये चिन नहीं रहता! [078 0189४ 01098 61১৪ 070: 0009610] 10298 ট£ 1৪6০7110010 059001 2600192 80 क्षल, 1 ৪ 9 ५. ११ ड़ 2:৫০ £ + + स्यारह এ উড




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