उपदेश कुसमाञ्जलि | Updesh Kusamajali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ` १५ फ)
ह; -निरोग रना हो सुख हे ; . सत्कार पूर्वक मिलना
हो सः प्रर ऊँच नोच' सोच कर हो: कार्य करना
परिष्ठताई है। - विपत्तिके आ जाने: पर निर्णय करके
कराय करना हो चतुराई है; -क्योंकि बिना विचारे
करनेसे पद पद पर विपत्तियोंका सामना करना
पड़ता है। ` क. हे
( ८५) हिंसक पशुओंसे भरे हुए बनमें ठक्षके नोच्दे
रहना ;. पके हुए फल, फूल, कन्दादि खाकर जल-पान
करना तथा धासके बिछोने पर सोना व बराल वस्त
“पहिनना अच्छा ;. परन्तु : भाई बन्चुओंमें धनसे होन
झोकर रहना अच्छा नहीं ` ‡ 7, ५.
( ८६ ) संसार रूपो `विष-हक्के दो : शे रसोले फल
हैं :-एक तो काव्यरूुपो अम्टतका: पान और ভু
सुजनोंका संग । রা | व है
( ८७ ) धन घूलि के समान है; योवन .प्हांडी
नटोके समान र; -श्रायु चञ्वल: जल-विन्दुके ससान
है और -जोवन फेनके समान -है।1. इसलिये जो
मनुष्य ` धरम नहीं करता है, वह- बढ़ापेमें, पश्मात्ताए
करता है| रण ग्ट - 71 ~ ~.
(দল > जिए” जस घनको उएथ्वोमें अधिक. नोचे
. गाड़ता है, ”-.«. घन -पातालमें जानेके लिये पहिले ,
हो से सागे कर लेता है।
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