उपदेश कुसमाञ्जलि | Updesh Kusamajali

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Updesh Kusamajali by गणेशदन्त शर्मा 'इन्द्र' - Ganesh Dant Sharma 'Indra'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ` १५ फ) ह; -निरोग रना हो सुख हे ; . सत्कार पूर्वक मिलना हो सः प्रर ऊँच नोच' सोच कर हो: कार्य करना परिष्ठताई है। - विपत्तिके आ जाने: पर निर्णय करके कराय करना हो चतुराई है; -क्योंकि बिना विचारे करनेसे पद पद पर विपत्तियोंका सामना करना पड़ता है। ` क. हे ( ८५) हिंसक पशुओंसे भरे हुए बनमें ठक्षके नोच्दे रहना ;. पके हुए फल, फूल, कन्दादि खाकर जल-पान करना तथा धासके बिछोने पर सोना व बराल वस्त “पहिनना अच्छा ;. परन्तु : भाई बन्चुओंमें धनसे होन झोकर रहना अच्छा नहीं ` ‡ 7, ५. ( ८६ ) संसार रूपो `विष-हक्के दो : शे रसोले फल हैं :-एक तो काव्यरूुपो अम्टतका: पान और ভু सुजनोंका संग । রা | व है ( ८७ ) धन घूलि के समान है; योवन .प्हांडी नटोके समान र; -श्रायु चञ्वल: जल-विन्दुके ससान है और -जोवन फेनके समान -है।1. इसलिये जो मनुष्य ` धरम नहीं करता है, वह- बढ़ापेमें, पश्मात्ताए करता है| रण ग्ट - 71 ~ ~. (দল > जिए” जस घनको उएथ्वोमें अधिक. नोचे . गाड़ता है, ”-.«. घन -पातालमें जानेके लिये पहिले , हो से सागे कर लेता है।




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