जीवन साहित्य | Jivan Sahitya

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Jivan Sahitya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन-साहित्य पिरोधी झतितया बाय बरती थी। प्रथम केद्धामिमुसी जो वि सदा सार्वभौम साम्राज्य स्थापित करने वा प्रयत्त जिया करती धी, दूरी बेन्द्रपराडमुषी-जा कि एव बार बनाय गय साम्राज्य को फिर उसके अगा खद ত্র बरने का सदा प्रयत्त जिया वरती थी। परन्तु य दानों दक्तिया काम करने मे यूरोप कौ विनयो की अपेना बहुत अधित वलवती ची 1 यायं राष्ट तीन पृयक्-यृथर समूहो में विभवत क्ये जा सतते है। प्रथम-यूर्वी समूह जिसम बौशव, मगघ, चेदी, विदेह, और हेहय मुख्य थ दुसरा-मध्यवर्त्ती जिसमे कौरब, पाचाल, और भाव अत्यन्त प्रभावशात्री थे। तीसरा-पश्चिमी और दक्षिणी जिगमें अनेतर छाट और गवार परन्तु रणबीर ओर प्रसिद्ध भनुष्प थ। इनम कोई भी एस नही हुए जिन्होंने कभी भी प्रयम श्रेणी या महत्व प्राप्त किया हो। राष्ट्रो के इन बड़ सम्‌हा को साप्टतया पांच बार साप्राज्य वे रुप में सयुकत कर दिया गया था। दो वार युवनारव वै पुत्र माघाता भौर राजा मरत वे आधिएपय में इद्वावुआ ने विया । হম याद हैहपवशी वात्तवीय अजुन ने विया । इसके अतन्तर दृष्वाठु बशीय भगीरष से किया अन्त मे बुरुवशीय मरते नै गिमा। पटा वर साम्राज्य न सवे अन्तमें हुमा रै, यहू बात बेवव इस चोज सा प्रमाणित नहीं होती कि कौरव अपन समय वे सबसे अधिर बलशाली राष्ट्र ये यरन्‌ एस महत्वपूण तथ्य रा भी वि इस रामय कौशल पूरी तरह क्षीण और नगण्य हो चुके थे और अब उनमें उपर उठने यी सामर्य्य नही रही थी। हैहयो वे घांसन के वारण मारत के पूर्वीय सड़ की प्राचीन हिद-गम्यता के जिए भीषण उत्पात हुआ । इस खड़े मे निवासियों वी बृत्ति आययाद का शब्दश पालन बरन से अलग रहने वी थी। हैहपा ने अभिमान और हिंसा वा अवलम्बन ऐेपर ब्राद्मणा वे साथ सपप किया जिसमे गृह युद्ध-हुआ | इस शुद्ध में जमदग्ति के पुत्र परणुराम से इनसे साथाज्य को गदामे विए नप्ट बर दिया और भारत वी क्षत्रिय जाति वा उस समय विनाश कर दिया । हँहया वे पतन के अन- स्तर भारत म दा क शितया रह्‌ गदं} दवाटुदगीय और भरतव्ीय ग/दुरवशीय । उस समय इद्याउु- वरियो ধা বেল আমা আন पड़ता है जब वि भगीरष 05: 2 जनवरी १९५३ से लेकर उनी सन्तान परम्परा मे, कम-से-वम राम त, सुख साम्राज्य रहा । इर्ये अनन्तर जव दि জীহালী হা प्रतापमूर्य अपने मध्यान्ह शिसर पर पहुच गया तो उसका अस्ताचल की ओर प्रयाण अनिवार्य था। उनते पूर्ण यौयन वे अनन्तर वृद्धावस्था वी उस क्षीणता দা आना अनिवार्य था जो वि जब एव बार विसी राष्ट्र पर अधिवार जमा लेती है तो असाध्य हो कर धातक होती है। इनवे अनन्तर मस्तवशियों वा साम्राज्य आया । शातनु, विचित्रवीर्य, ओर्‌ पाड वे समय तव यह साम्राज्य थार्य राजनीति वी बेन्द्र-पराटमुखी दावित से खड-छड हो चुका था परन्तु फिर भी फौरवगण राष्ट्रो मे भ्रयम स्यान रखते धे भौर बुस्वशीय भरत राजागण सम्यता वे शिसर माने जाते थे। परन्तु धृतराप्ट्र के समय में बेन्द्राभिमुसी एवित फिर प्रबल होने लगी थ्री और दूसरे महासाखाज्य का विचार मभ मनुष्यो कौ कत्पनागौ का प्रपाने विषय वना हुआ था । अनेक राष्टरो ने महेत्तम सैनिक प्रतिष्टा ओर राजनीतिक दाक्ति ओ प्राप्त वर लिया धा>-शाचालो ने दुपद और उसके पुत्रों वे नेतृत्व में, कौरवों ने भीष्म ओर उमरे भाई अरति वे नेतृत्वे जो वि सैनिक कुर लता और साहस में परशुराम के समान माना जाता धा, चेदियो ने वीर और महारथी शिशुपाल के नेतृत्व में। बृहृद्रध ने मगधां वा एवं बलशाली राष्ट्र बनाया था यहा तब वि सुदृरवर्ती बगाल पौंडवश्शी वासुदेव के आ- धिषत्य मे ओर्‌ मैधव वृद्धक्षत्र और उ्ते पुत्र जयद्रय वे आधिपत्प में शक्तियों वी पवित मे कुटु ख सपनी गिनती कराने लगे पे। यादव-राष्ट्र अपनी प्रचढ् बीरता और वि- लक्षण प्रतिभा के वारण राजनीतिक सतुतत में एवं बडी मैनिव झत्रित माने जाते थे,परन्तु उनमें इतना पर्याप्त मेत और ऐवय नही था रि ये अपने लिए स्वतस्त्र साम्राज्य वी आशा कर सदे । ये सपूर्ण राष्ट्र यद्यपि बताती थे,तवापि इनमें कोई भी बौरवो को प्राप्स होने बाते साखार्य का विरोध बरने वी सामर्थ्य नहीं रसता था। पीछे से जरासध वे आधिपत्य में बाहूदय मागपोनै छण भरने लिए राजवीतिय सन्तुलन कौ धिगाड दिया । मागधो की साम्राज्य की पहली महान्‌ आशा और उसके अन्त डोए इविहास--जिसतरा पुतजेन्म कौरवों के अतिम पतन




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