शोध और समीक्षा | Shodh Aur Samiksha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यदि हम अपनी अनुभूति बना कर अभिव्यक्त करना चाहेंगे तो वह श्रपने जीवन के
लिए अ्रम उत्पन्न करना होगा तथा आगे की पीढ़ी मी हमकी प्रर्थात् हमारे आधुनिक
जीवन को समभने में भ्रम में पड़ेगी, वयोकि बह जिसे हमारा अपना समभेगी उसका
प्रधिकांश हमारा न होकर हमारे पूर्वजों का होगा । पूर्वजों के जीवन का खोल ओरोढ़
कर हम पहले तो जीवित रह सकते थे, तथा अपनी स्वतन्त्र सत्ता का भी उसके
माध्यम से वोध कर्ा सकते थे । परन्तु विज्ञान के कारण] श्रव वह् परिस्थिति नहीं
रही । हमारे जीवन के समस्त रूप श्रौर मृत्यो मे प्रव इतना श्रधिक परिवर्तन हो
गया हैँ तथा होता चला जा रहा है कि अपनी झ्राधुनिकता को खोकर केवल परम्परा
या पूर्वजों की भाव-सम्पत्ति के सहारे हम जीवित नहीं रह सकते अपने जीवन की
अभिव्यक्ति नहीं कर सकते । अत: সাজ ঈ काव्य में हमें अपनी आधुनिक राग-बोध
शक्ति और अस्तित्व-मर्धादा की स्वकीय रूप में अभिव्यक्ति देनी है । यह कहना आज
निराधार होगा कि हम जो जीवन झाज जी रहे है वह सर्वांग में हमारा न होकर
परम्परा की भी भश्रधिकांश ইল ই | तब तो कहना पड़ेगा कि वह जीवन अपनी परम्परा
की ही देन क्यों है विभिन्न देशों की परम्परा की देन भी तो, उसको मिली है । परन्तु
यह बात विशेष महत्त्व नहीं रखती । परम्परा चाहे श्रपनी हो या परकीय आज के
जीवन की समस्याएं हल नहीं कर सकती । आज कोई भी व्यक्ति किसी मी स्वकीय
परकीय परम्परा का सहारा लेकर जीवित नहीं रह सकता । श्राज तो वैज्ञानिक झआवि-
प्कारों के नए परिवेश में लिए गए जीवन की स्वकीय अनुमूतियों से ही हमारा श्रस्तित्व
बचा रह् सकता है । श्रतः नई कविता में आधुनिकता की जो श्रावाज है वह स्वकीय,
श्रस्तित्व रक्षा की श्रावाज है। आधुनिकता को स्वीकार कर काव्य सृजन करने
वाले कवि की कृति की यही सञ्रसे महत्त्वपूर्ण देन है कि वह आधुनिक जीवन की
अनुभूतियों के प्रति पूर्णात: ईमानदार है । उसकी हृष्टि में वाहर श्रते वाला ह्र
वाणी ग्रौर परकीय विचार या भाव चाहे वह अपने श्रतीत से ग्राया हो चाहे किसी
নাভ देश से--काव्य सृजन के लिए बहिष्करणीय है, क्योंकि वह विचार या भाव
उसे अपने अनुभूति विचार या भाव के प्रति ईमानदार नहीं रहने दे सकता। इसी
आधार पर नई कविता ने आधुनिकता का अभिषान किया है । मैं समभता हूँ कि
निष्पक्ष विचार-शील व्यक्ति नई कविता की इस ईमानदारी की प्राचीन के प्रति
बगावत” कहने का साहस न करेगा । श्र न उसे नई कविता के गत दशक की
उपलब्धियों को समझ लेगे पर नए-पुराने के संघर्ष को जीवित रखने की आवश्यकता
ही प्रतीत होगी ।
अब रहा संघर्ष का दूसरा पक्ष जो प्रश्व उत्पन्न करता है कि वया आधु-
निकताविहीन शास्त्रीय काव्य बहिप्करणीय है ? इस प्रश्न का उत्तर स्वीकारात्मक
नहीं होना चाहिए । शास्त्रीय काव्य आधुनिक जीवन की अभिव्यक्ति भले ही न करे,
4.
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