व्यवसाय व्यवस्था के सिद्धान्त | Vyavsay Vyavastha Ke Siddhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
583
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)50890 95६ “69 91215 199 20 हणा1500068, 15 99101 15
ए ० ৪2) 115 0० 5 १५16 ` >
9৪5৮5058551 270 एा०9 ডট 500010 ४६ 96 319 66 9 99910685
02০7 টস চ5 2০৮৮০ আচ ৭9০51 9০৪ ४० ६१6 ए०व
19600973097 ০ है. फद्याएब
4 पलप 2 155)0 5558 0.” 818006800506 25 5, 000055190৯1
* ९९८ 06৪0. €0160600:৪, १० 80৩ “81210805281 40560026+ ১৩
5088৩015) 1050000000৮ 26 চ5 0৮৩ 00155510051 ध्वा 01
75060577200 82005 আত 220672505 চপ कतै
76820 55 2. 015000106 1059 0৫6 0095119005০ 9:901279896 91
प्रभात ८७] ए९0000:३०ए ৮ 00006078 03111553 ৮ ০9700780%
[0750055010৪ 10009017506 061003106339 01830,1530190 ज्ञा]॥ 580191
19161911099 009 01656 0 90070য0% 0 [पताव
अध्याय २
प्रबन्ध एवं संगठन के तिद्धान्त
“प्रबन्ध उद्योग की बह जीवतदामिती शक्ति है, जो सगठन को शक्ति देता है,
संचालित करता है एव नियन्त्रण मे रखता है १
प्रबन्ध
[#दाव4४९फल्क)
प्रबन्ध, व्यवस्था! एवं 'सगठत' में अन्तर--
জালা श्रवन्ध (80910997790), জমা (& १
सगन (014111581101}--य तीनो ही शब्द पर्यायवादी छब्दा के हुप मे प्र |
किये जाते हैं । किन्तु, यदि हम ग्रम्भीरता से इनके अर्थ का विश्लपण करें, तो
होगा विये तीनो हौ शव्द तथा इनके लेन पृथक प्यक ই ॥ 1211100১011 |!
User Reviews
No Reviews | Add Yours...