आवश्यक दिग्दर्शन भाग 2 | Aavashyak Digdarshan Bhag 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : आवश्यक दिग्दर्शन भाग 2  - Aavashyak Digdarshan Bhag 2

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अमर चन्द्र जी महाराज - Amar Chandra Ji Maharaj

Add Infomation AboutAmar Chandra Ji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
লাল जीवन को महत्व 8 संसार में अनन्तकाल से भटकती हुई कोद श्रात्मा जन कमिक विकाशं का मागे अपनाती है त्तो वह अनन्त पुण्य कम का उदय होने पर निगोद से निकल कर ग्रत्येक वनस्पति, पृथ्वी: जले आदि की योनियों में जन्म लेती है। और र्व यहो भी श्रनन्त शुभकमं कस उदय होता है तो हीन्द्रिय केचुआ आदि के रूप मे जन्म होता है। इसी प्रकार त्रीन्रिय चींटी आदि, चतुरिन्द्रिय मक्‍्खी मच्छर श्राटि, पञ्चेन्द्रिय नारक तिच आदि- की विभिन्न योनियों को पार करता हुआ, क्रमशः ऊपर उठता हुआ जीव, अनन्त पुण्य बल के प्रभाव से कहीं मनुष्य जन्म अहण करता है 1 भगवान्‌ महावीर कहते हैं कि जब “अशुभ कर्मों का भार दूर होता है, आत्मा शुद्ध, पवित्र ओर निर्मल बनता है, तत्र कटं वद्‌ मनुष्य की सव श्रेष्ठ गति को प्राप्त करता है।> कम्माणं तु॒पहाणाए आशाुपुब्बी कयाइड। जीवा सोहिमरष्पत्ता श्राययति मणुस्पयं ॥ --( उत्तराध्ययन ३ 1 ७ )- ` विश्व में मनुष्य ही सत्र से थोडी संख्या में है, अतः वही सबसे दुलंभ भी है, महा भी है। व्यापार के क्षेत्र में यह सर्व साधारण का परखा हुआ सिद्धान्त है कि जो चीज जितनी ही अल्प होगी, बह उतनी ही अधिक मंहगी भी होगी । ओर फिर मन॒ष्य तो अल्प भी है और केव अल्पता के नाते ही नहीं, अपितु गुणों के नाते श्रेष्ठ भी है। भगवान्‌ महावीर ने इसी लिए, गौतम को उपदेश देते हुए. कह है-- संसारी जीवों को मनुष्य का जन्म चिस्काल तक इधर उधर की श्रन्य योनियो में मठ्कने के घादे बढ़ी कठिनाई से प्रात होता है, वह सहज नहीं है। दुष्कम का फल बढ़ा ही मयंकर होता है, अतएव दे. गौतम ! ব্য, भर के लिए भी प्रमाद मत कर |”




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now