गूंगे केरी करकरा | Gunge Keri Sarkra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Gunge Keri Sarkra by रजनीश - Rajnish

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रजनीश - Rajnish

Add Infomation AboutRajnish

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अकण कहानी प्रेव की १५ प्रेम कैसे करोने ? भय से कहीं प्रेम उपजा है।!. भ्रब,ओ,तो, घृणा उपजती রর भय से तो शत्रुता उपजती है... प्रगओे-को--दुस-अयनी-सुय्क्षा में. जाते हो 1. पूरा जीवन, जैसे-जैसे बच्चा बढ़ा होता है, वैसे-वैसे सुरक्षा करता है-घन से, मकान से, व्यवस्था से; सब तरफ से इन्तजाम करता है कि कही से कोः हमला न हो जाए। लेकिन ईसी इन्तजाम में हम भूल जाते हैं कि सब द्वार बन्द हो जाते हैं, और प्रेम के आने का रास्ता भी अवरुद्ध हो जाता है। सुरक्षा पूरी हो जाती है, लेकिन सुरक्षा ही कन्न बन जाती है। एक सम्राट ने अपनी सुरक्षा के लिए एक महल बनाया। सम्राट निश्चित ही और भी डरे हुए लोग हैं, क्योकि उनके लिए और भी ज्यादा खंतरा है। उनके पास बहुत कुछ है, और बहुत कुछ लूटा जा सकता है। इसलिए उतनी ही मात्रा मे भय भी है । एक बड़ा महल बनाया, उसमे उसने एक ही दरवाजा रख।; कोई खिडकी नही, कोई दरवजे नही, शत्रु को भीतर पहुचने का कोई उपाय नहीं । षडोस का सम्राट उसके महल को देखने आया । वह भी प्रभावित हुमा, क्योकि महल इतना सुरक्षित गढ था कि उसमे कोई प्रवेश कर ही न सके । एक ही दरवाजा और एक दरवाजे पर पहरेदारो की जमात और एक पहरेदार पर दूसरा पहरेदार, दूसरे पहरेदार पर तीसरा पहरेदार-ऐसी श्खला । क्योकि, पहरेदार का भी क्‍या भरोसा | रात प्रवेश कर जाए, हत्या कर दे! तो एक पहरेदार पर दूसरा पहरे- दार, दूसरे पर तीसरा-ऐसी एक लम्बी कतार, और एक ही दरवाजा, घुसने का कोई उपाय नही । दूसरा सम्राट भी प्रभावित हुआ । उसने कहा, मैं भी ऐसा ही भवन बना लूग। । जब वे दोनो द्वार पर खड़े होकर ऐसी बाते कर रहे थे तो एक भिखारी सड़क के किनारे बैठ के जोर से हसने लगा। दोनो ने चौंककर उसकी तरफ देखा । उप्त भिखारी ने कहा : “माफ करें! इसमे सिर्फ एक भूल है। मैं भी यही बंठा रहता हू, भोख सागता हु । यह मकान मैंने बनते देखा । इसमे सिर्फ एक खत्तरा है। बहू खतरा भी मह॒गा पडेगा । अगर मेरी सलाह मानें तो आप भीतर हो जाए और यह एक दरवाजा और है, इसको भी चुनवा दें, इसमें भी पत्थर लगवा दें। फिर कोई खतरा नही है ।'' तो उस सम्राट ने कहा कि नासमक्न ! बात तो तेरी समझ में आती है, लेकिन फिर तो मैं मर ही गया भीतर। यह तो कब्न हो गई !




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now