जगत् और जैनदर्शन | Jagat Aur Jaindarshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बृन्दावन शुरुकुल के उत्सव पर विद्यापरिषद् के
समभापतिपद से ससस््कृत में दिये हुए भाषण का
अनुबाद
है भाग्यशाली सभ्यमद्दोदयगण !
यद्यपि मँ इस बात को नहीं जान सकता कि विद्वानों की
इस विद्यापरिषद् का मुमे आप ने सभापति क्यों चुना है?
तथापि में इतना तो अवश्य द्वी कहूँगा कि यदि इस पद से
किसी आ्यसमाजी महाशय को सुशोभित किया जाता তী
विशेष उपयुक्त द्वोता। किन्तु में आप सज्जनों के अनुरोध
को उल्लंघन करने में असमर्थ होने के कारण आप सज्जनों
के द्वारा दिये गये पद को स्वीकार करता हूँ ।
आज की सभा का उद्देश्य 'घर्परावतनमीमांसा' रखा
गया है। इसका तात्पय में तो यही सममता हूँ कि
बत्तेमान समय में जो अनेक प्रकार के कुमत अपने आपको
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